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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ २०१० आभ्यन्तरतपोनिरूपणम् सेवा करणमिति शुश्रूषणाविनय इति । 'अणच्चासायणाविणए य' अनत्याशातनाविनयश्व, अति-अतिशयेन-आ-आय:-सम्यक्त्वादेलामः, तस्य शातना इति अत्याशातना तनिषेधोऽनत्याशातना पृषोदरादित्वात्साधुः । 'से कि तं सुस्वसणा विणए' अथ कः स शुश्रूषणाविनय इति प्रश्नः, भगवानाह-'सुस्म्सणाविणए अणेगविहे पन्नत्ते' शुश्रूषणा विनयोऽनेकविधः प्रज्ञप्तः । 'तं जहा' तद्यथा-'सक्कारेई सत्कार इति वा-विनयाहस्य सत्कारादिकरणमिति । 'सम्माणेइ वा' सन्मानमिति वा गुर्शदेः प्रशस्ताहारादिना संमाननमिति वा, 'जहा चउद्दसमसए तइए उदेसए जाव पडिसंसाहणया' यथा चतुर्दशशते तृतीयोदेश के यावत् प्रतिसंसा. धनता भगवती सूत्रस्य चतुर्दशतकीयतृतीयोद्देशके सत्कारादारभ्य प्रतिसंसागया है-'तं जहा' जैसे-'सुस्ललणाविणए य अणच्चासायणाविणए य' शुश्रूषणाविनय और अनत्याशातनारूप विनय गुरु आदिकों की विधिवत् सेवा शुश्रूषा करना यह शुश्रूषणा विनय है और जिस विनय से सम्यक्त्वादि का लाभ होता है वह अनत्याशातना विनय है । 'से किं तं सुस्सूसणा विणए' हे भदन्त ! शुश्रूषणा विनय कितने प्रकार का होता है ? प्रभुश्री कहते हैं-'सुस्सूसणा विणए अणेगविहे पण्णत्ते' हे गौतम ! शुश्रूषणा विनय अनेक प्रकार का होता है 'तं जहा' जैसे 'सकारेइ वा विनय योग्य पुरुषों का सत्कार आदि करना 'सम्माणेह वा' गुरु आदि जनों का प्रशस्त आहार आदि द्वारा सन्मान करना 'जहा चउद्दसमसए तइए उद्दसए जाव घडि संसाहणया' जैसा कि भगवती सूत्रके चौदहवें शतक के तृतीय उद्देशक में सत्कार से लेकर यावत 'सुस्सूसणाविणए य अणच्चासायणाविणए सुश्रूषायविनय भने अनत्याशातना રૂપ વિનય ગુરૂ વિગેરેની વિધિ પ્રમાણે સેવાશુશ્રષા કરવી તે શુશ્રુષા વિનય છે. અને જે વિનયથી સમ્યક્ત્વ વિગેરેને લાભ થાય છે, તે અનન્યાશાતના विनय उवाय छे. 'से कि तं सुस्सूसणाविणए' लगवन् शुश्रूषा विनय या प्रश्न हे छ १ मा प्रश्न उत्तरमा प्रभुश्री छे ४-'सुरसूमणाविणए अणेगविहे पन्नत्ते गौतम ! शुश्रूष विनय मन मारने ४ छे. 'तं जहा' ते मा प्रमाणे छे. 'सक्कारेइ' विनय ४२वा योय ५३पाना सत्स२ विगैरे ४२३1. 'सम्माणेइ वा' शु३तन विगेरेनु प्रशस्त माहार विगैरेथी सन्मान ४२०'. 'जहा चउद्दसमसए तइए उद्देसए जाव पडिसंसाहरणया' रम मसती. સૂત્રના ચૌદમા શતકના ત્રીજા ઉદ્દેશામાં સત્કારથી લઈને યાવત્ પ્રતિસંસાધનતાના કથન સુધીમાં કહેવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણે અહિયાં પણ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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