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________________ સરદ भगवती सूत्रे भावावसोदरिका । 'सेत्तं ओमोयरिया' सैषा अवमोदरिका कथितेति । 'से किं 'वं भिक्खायरिया' अथ का सां भिक्षाच इति मनः सगवानाह - भिक्खायरिया अणेगविद्या पन्नत्ता' भिक्षाचर्या अनेकविधा अनेक प्रकारिका महप्ता- कथिता इति । 'तं जहा' तथा 'दव्वाभिग्गदचरए' द्रव्यामिमहचरकः, भिक्षाचप भिक्षाचवतोश्चाभेदविवक्षया द्रव्याभिग्रहचरको भिक्षाचया इति कथ्यते द्रव्याभिग्रहाथ लेप कृतादिद्रव्यविषया ज्ञातव्या इति । 'जहा उववाहए' जान सुद्धेसणिए, संखादत्तिए' यथा औपपातिके यावत् शुद्धेपणीयः संख्यादत्तिकः, औपपातिकस्य अल्पबोलना, धीमे बोलना, क्रोध में निरर्थक बहुत प्रलाप नहीं करना तथा हृदयस्थ क्रोध कम करना यह सब भाव ऊनोदरिका के प्रकार हैं । यहाँ तक अवमोदरिका का कथन किया गया है । 'से किं तं भिक्खायरिया' हे भदन्त ! भिक्षाचर्या कितने प्रकार की है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - ' भिक्खायरिया अणेगविहा पण्णत्ता' हे गौतम! भिक्षाचर्या अनेक प्रकार की कही गई है- 'तं जहा' जैसे''दव्वाभिग्राहचरए' द्रव्याभिग्रह चरक - यहाँ भिक्षाचर्या और भिक्षाचर्या वाले में अभेद विवक्षित हुआ है, इसलिये द्रव्याभिग्रह चरक को भिक्षाचर्या शब्द से कह दिया गया है । द्रव्याभिग्रह लेपकृतादि द्रव्यविषयक होते हैं । 'जहा उववाइए जाव सुद्धेस णिए संखादत्तिए' जैसा कि औपपातिक सूत्र के पूर्वार्ध के तीसवे सूत्र में यावत् शुद्धैषणीय संख्यादत्तिक तक इसका वर्णन किया गया है । अतः वहां से ધીરે ખેલવુડ કોષથી અથ વગરના ખકવાદ ન કરવા અને હૃદયમાં ક્રોધ આ કરવા આ તમમ ભાવ અવમેારિકાના પ્રકારે છે. આ રીતે આ અવમેારિકાનું કથન આટલા સુધી કરેલ છે. 'से कि त भिक्खायरिया' हे भगवन् लिक्षान्यर्या डेंटला अमरनी ही छे? या प्रश्नना उत्तरमां अलुश्री गौतमस्वामीने - ' भिक्खायरिया अणेगविद्या पण्णत्ता' हे गौतम! लिक्षायर्या भने अारनी ही छे. 'त' जहा ' ते या प्रभावे छे. 'दव्वाभिग्गहचरए' द्रव्यालिग्रह थरम् - मडियां लिक्षान्यर्या અને ભિક્ષાચર્યાં કરવાવાળામાં અભેદની વિવક્ષા કરી છે. તેથી દ્રવ્યાભિગ્રહ ચરકને ભિક્ષાચર્યા શબ્દથી કહેલ છે. દ્રબ્યાભિગ્રહ લેપકૃત વિગેરે દ્રવ્ય વિષયवाजा होय छे. 'जहा उववाइए जाव सुद्धेखणिए संखादत्तिए' भोपयाति सूत्रमां જે પ્રમાણે ઔપપાતિક સૂત્રના પૂર્વીના ત્રીસમા સૂત્રમાં યાવત, શુષ્લેષણીય સભ્યાદત્તિક સુધી તેનું વર્ણન કરેલ છે, જેથી તે વર્ષોંન ત્યાંથી જેઈ લેવુ i
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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