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________________ प्रमैयान्द्रका का श०२५ उ.७ ०१ प्रायश्चित्त कारनिरूपणम् ३५ 'अल्पलोभमान पुरुषो भावावमोदरिको भवसि अत्र यावत्पदेन मानमाययोहणं भवति तथा च अल्पक्रोधवान् अल्पमायावान् अल्पसानवान्न अल्पलोभवान् भावतोऽवमोदरिको भवतीति । 'अप्पसदे' अल्पशब्दः, राज्यादावसंयत जागरणभयादपशब्द इति भावः । 'अप्पझंझे' अल्पझंझा, झंझाऽज विश्कीर्णा कोपविशेषात् वचनपद्धतिः, यद्वा झंझा-अनर्थक बहमलापिता तद्रहित इति, येन येन गणस्य -संघस्य वा छेदो भवति तादृशशब्दस्याप्रयोक्ता इति । 'अस्तुमं तुमें' अल्प तुमं तुमः, तुसं तुमो हृदयस्थः कोपविशेष इति । 'से तं भावोमोयरिया' सैषा, जाव चप्पलोमे अल्पक्रोधवाला यावत् अल्पलोलवाला जो पुरुष होता है वह माय ऊनोदरिका नारा हाजाता है। यहां गवत्पद से भान भाया का ग्रहण हुआ है। तथा च-अल्पक्रोधषाला मनुष्य अल्पमानवाला, अल्पभायावाला और अल्प लोभक्षाला मनुष्य भाव की अपेक्षा अवमोदरिक होता है। 'अप्पसहे, अप्पझंझे, अप्पतमं तुमे, सेत्तं भावोषोनिया' इसी प्रकार रात्रि आदि में असंयत पुरुषों के जगजाने के भय से जो थोडा बोलता है, फोपविशेष से जोर २ से पोली गई वाणी का नाम झंझा है। अथवा-अनथक बहुत बशवाद करना इसका नाल झंझा है। ऐसी वाणी से रहित जो होता है यह अल्प झंझा वाला है । अपवा जिल जिस शब्द के बोलने से गण का अथवा संघ का विच्छेद हो जाये ऐले शब्द का जो प्रयोग नहीं करता है यह अल्प झ झा वाला है 'रपतुम तुमे हृदयस्थकोप विशेप का नाम तुसं तुम है हृदधारण कोष को कम करना यह अल्प तुम तुम है। इस प्रकार ક્રોધવાળા અને યાવત્ અલ્પ માનવાળા, અ૫ માયાવાળા અને અલ્પ લોભવાળા મનુષ્ય ભાવની અપેક્ષાથી અવમેરિકા કહેવાય છે અહિયાં માન, भाया में पहे। यावत् शपथी अहए या छे. 'अपसदे, अप्पझंझे, अप्प तुम तुमे, सेत्त भावोमोयरिया' मा शत शत्री विगैरेभा मयत पुषीनी मी જવાના ભયથી જેઓ બોલે છે, ક્રોધથી જોર જોરથી બેલાયેલ વાણીને ઝઝા કહે છે. અથવા નિરર્થક વધારે પડતો બકવાદ કરે તેને ઝંઝા કહે છે એવી વાણી જે બોલતો નથી તે “અલપ ઝંઝા' કહેવાય છે. અથવા જે કઈ એવા શબ્દો બોલવાથી ગણ અગર સંઘને વિચ્છેદ થઈ જાય એવા શબ્દ પ્રયોગ જે ઓ કરતા નથી. તે અલપ ઝંઝાવાળા કહેવાય છે. દા. तुम तुमे' (यमा २९स ओघ विगेरेने तुम तुम ४९ छे. यमा २ धन કમી કરે છે, તે અલ્પ તુમંતુમ કહેવાય છે. આ રીતે થેડું બોલવું, ધીર
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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