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________________ अपपतीसत्रे 'असंजमं वा-संजमासंजमं वा उपसंपज्जइ' समायिकसंयतत्वं चा परिहारविशुद्धिकसंयतत्त्वं चा सूक्ष्मसंपरासंयतत्वं वा असंयभं वा संयमासंचयं वा उपसपयते । छेदोषस्थापनीयसंयतः छेदोपस्थापनीयत्वं त्यजन् सामायियसंयतत्वं संपद्यते यथा आदिनायसाधुः अजितस्वामितीर्थ मतिपघमानः, परिधारविशुद्धिकसंयतत्व पा मतिपद्यते छेदोषस्थापनीयसंयत एव परिहारविशुद्धिक संपदस्य योग्यतादिति तथा सूक्ष्मसंपरायत्वं वा असंयमं संयमासंयम वा प्राप्नोतीति । 'परिहारविनिए पुच्छा' परिहारविशुद्धिकसंयतः खल्लू महन्त परिहार विगु ईकरांयतत्वं न्यजन के धर्म त्यजति कं धर्म च उपसंपचते इति पृच्छा-पना भगवालाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'परिवारविमृद्धिसंजय ते जह' परिवारविशुद्धिसंयतत्वं जहाति अवस्था का, परिहारविशुद्धिक मांधत अवस्थामा सक्षमसंपरायसंवत अवस्था का, असंयत्त अवस्थाका अधवा संचमान्य अवस्था का उपादान करता है । छेदोपस्थापनीयसंबल दोपहनापनीयता का परित्याग करते हुए जैसे अजीतनाथ के तीर्थ को स्वीकार करते हुए आदिनाथ के साधु के जैसा सामायिजसंपत्तता प्रासकरता है, अपना परिहारविशुद्धिकसंगत अवस्था को स्वीकार करता है क्योंकि दोपस्थापनीय चारित्रालाही परिहारविशुद्धिक के योग्य होता है। अथवा वृक्ष्यसंपराय जबरमा को, असंयात अचस्था को अगवा संगमासंघम अवस्था को प्राप्त करता है। परिवारपिस्टुद्धिए पुच्छा' हे भदन्त ! परिहार विशुद्धिप्तसंयत परिहार विशुद्धिक्षसंगत अवस्था का परित्याग करता हुआ किस र्ग का परेवाग करना है और किस अवस्था या उपादान करता ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोरमा ? परिहाइविसुछिसंजयतं जहइ' हे गौतम! હારવિશુદ્ધિક સંયત અવસ્થાને ચૂમસં૫રાય સંયત અવસ્થાને, અસંયત અવસ્થાને અથવા સંયમસંયમ અવસ્થાને પ્રાપ્ત કરે છે. છેદો પસ્થાપનીય સંયત છેદપસ્થાપનીયપણાને પરિત્યાગ કરતો થકે આદિનાથના સાધુ પ્રમાણે અજીતનાથના તીર્થને રવીકાર કરતા થકા પરિહાર વિશુદ્ધિક સંયત અલસ્થાન વીકાર કરે છે કેમકે છેદેપસ્થાપનીય ચારિત્રવાળા જ પરિહારવિશુदिन योग्य डाय छे. 'परिहारविसुद्धिए पुच्छा' मगवन् परिक्षाविशुद्धि સંવત પરિહાર વિશુદ્ધિક સંયત અવરથાનો પરિત્યાગ કરતા થકા કયા ધર્મનો પરિત્યાગ કરે છે ? અને કઈ અવસ્થાની પ્રાપ્તિ કરે છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री ४ छ है-'गोयमा ! परिहारचिसुद्धिसंजयन्तं जड्इ' गौतम ! परि
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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