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________________ प्रभैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०५ विंशतितम परिणामद्वारनि० ३४७ इत्यादि, 'गोमा' हे गौतम ! 'जह नेणं एकं समयं जहा पुलाए' जघन्येन एक समयं यथा पुलाकः, जघन्येन एकं समयं यावद् वर्द्धमानवरिणामो भवेदिति भावः । 'एवं जाव परिहारविमुद्धिए' एवं यावत् परिहारविशुद्धिकः, यावत्पदेन छेदोपस्थापनीयसंयतस्य ग्रहणं भवति तथा च सामायिक संयतवदेव छेदोपस्थापनीयपरिहारविशुद्धिकसंयतौ जघन्येन एकं समयं यावत् चर्द्धमानपरिणामी भवेताम् तथा उत्कर्षेणान्तर्मुहुत्तेपर्यन्तं वद्धमानपरिणामौ भवेतामिति भावः । 'हुम संप रायसंजर णं भंते !" सूक्ष्मसंपरायसंयतः खलु भदन्त ! ' केवड्यं कालं वड्रमाणपरिणामे होज्जा' कियन्तं कालं वर्द्धमानपरिणामो भवेदिति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम! जहन्नेणं एकं समयं जघन्येन एकं समयं यावद् वर्द्धमानपरिणामो भवेत् सुक्ष्म संपरायसंयतः प्रतिपत्तिवाला रहता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोपमा जहन्नेणं एक्कं समयं उक्को सेणं एवं अंतोन्तं' हे गौतम! सामायिक संयत जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त तक वर्द्धमान परिणाम वाला रहता है 'जहा पुलाए' जैसा कि पुलाक रहता है । ' एवं जाव परिहारनिस्रुद्धिए' इसी प्रकार से छेदोपस्थापनीयसंत और परिहार विशुद्धिकत ये दोनों भी जघन्य से एक समय तक और उत्कृष्ट से एक अन्तर्मुहूर्त्त तक कईमान परिणामवाले रहते हैं । 'सुमपरायसंजरण भंते !" हे भदन्न ! सूक्ष्मसंगराव संपन 'केवइयं कालं चडूमाणपरिणामे होज्जा' कितने काल तक बर्द्धमान परिणामों वाला रहता है ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं - 'गोधमा ! जहन्नेणं एक्कं समयं' हे गौतम | सूक्ष्म संपरायसंयत जघन्य से एक समय तक સામાયિક સયત કેટલા કાળ સુધી વમાન પરિણામાવાળા હાય છે ? આ प्रश्नना उत्तरमां प्रलुश्री हे छे - 'गोयमा ! जहन्नेणं एकं समयं उक्कोसेणं एग' अंतोमुहुत्तं' हे गौतम! सामायिक संयत धन्यथी मे समय सुधी અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂત સુધી વમાન પરિણામેવાળા રહે છે. 'जहा पुलाए' प्रेम युवा रहे छे, तेभ 'एव' जाव परिहारविसुद्धिए' भे પ્રમાણે છેદેપસ્થાપનીય સંયત અને પરિહાર વિશુદ્ધિક સંયત આ બેઉ જઘન્યથી એક સમય સુધી અને ઉત્કૃષ્ટથી એક અંતર્મુહૂત સુધી વધમાન પરિણામवाणा रहे छे. 'सुडुमसंपरायसंजए णं भंते !' डे लगवन् सूक्ष्मस पराय संयत 'has' काल' वड्ढमाणपरिणामे होज्जा' उद्या आण सुधी वर्धमान परिशाभोवाणा रहे छे? सा प्रश्नना उत्तरमा प्रभुश्री हे छे - गोयमा ! जहनेणं एक समय' हे गौतम! सूक्ष्मस पराय संयंत धन्यधी भे સમય
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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