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________________ भगवतीस्त्र संपरायसंयतः श्रेणीयारोहन बर्द्ध मानपरिणामो भवेत्, श्रेणीतः पतन् हीयमानपरिणामो भवेत् परन्तु अवस्थितपरिणामवान् न भवेत्, गुणस्थानकस्य तथा स्थामाव्यादिति भावः 'अहक्खाए जहा णियंठे' यथाख्यात संयतो यथा निर्धन्या, यथाख्यातसंपतः निग्रन्थवदेव वद्ध मानपरिणामो वा भवेत् नो हीयमानपरिणामो भवेत् अवस्थितपरिणामो घा भवेदिति भावः ।। ___ अथैषां परिणामस्य स्थितिमाह-'सामाइयसंजए थे' इत्यादि, 'सामाइयसंजए णे भंते ! लेवइयं कालं चड्माणपरिणामे होज्जा' सामायिकसंयतः खलु भदन्त ! कियकालपर्यन्तं वर्द्धमानपरिणमो भवेदिति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' होज्जा, णो अचहप्रपरिणामे होज्जा' हे गौतम ! सूक्ष्मसंपरायसंयत वर्द्धमान परिणाम वाला भी होता है और हीयमोन परिणाम वाला भी होता है, पर पह स्थिर परिणामवाला नहीं होता है। सूक्ष्मसंपरायसंयत श्रेणी पर आरोहण करते समय बर्द्धमान परिणाम वाला होता है और जब वह श्रेणी से पतित होता है तो वह हीयमान परिणाम वाला होता है क्यों कि इस गुणस्थान का ऐसा ही स्वभाव होता है। इसलिये वह अगस्त्रित परिणाम पाला नहीं होता है। 'अहक्खाए जहा णियंटे' यथाख्यातायत निग्रन्थ के जैसे बर्द्धमान परिणामवाला भी होता है और अवस्थित परिणाम वाला भी होता है। किन्तु वह हीयमान परिणामवाला नहीं होता है। अब परिणामों की स्थिति कहते है। 'सामाइयसंजए णं भंते ! केनइयं कालं बमाणपरिणामे होज्जा' हे भदन्त ! जापायिक संयत कितने काल तक वर्द्धमान परिणामों પરિણામવાળા પણ હોય છે, હીયમાન પરિણામવાળા પણ હોય છે, પરંતુ તે અવસ્થિત (સ્થિર) પરિણામવાળા હોતા નથી. સૂમસં૫રાય સંત શ્રેણી પર આરોહણ કરતી વખતે વર્ધમાન પરિણામવાળા હોય છે, અને જ્યારે તે શ્રેણીથી પતિત થાય છે, તો તે હીયમાન પરિણામવાળા હોય છે. કેમકે આ ગુણસ્થાનનો સ્વભાવ જ એ હોય છે તેથી તે અવસ્થિત પરિણામવાળા खाता नथी. 'अहक्खाए जहा णियंठे' यथाव्यात सयत नियन्यना ४थन प्रभाएं વર્ધમાન પરિણામવાળા પણ હોય છે, અવસ્થિત પરિણામવાળા પણ હોય છે, પરંતુ તે હીયમાન પરિણામવાળા હોતા નથી. વીસમા પરિહાર દ્વારનું કથન સમાપ્ત - હવે એકવીસમા પરિણામ-સ્થિતિદ્વારનું કથન કરવામાં આવે છે, 'सामाइयसंजए | भंते ! केवइयं काल वड्ढमाणपरिणामे होज्जा' लापत
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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