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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.७ सू०१ प्रथम प्रज्ञापनाद्वारनिरूपणम् २६५ - संजया पन्नत्ता' पश्चप्रकारकाः संवताः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा-'सामाइय संजए' सामायिकसयतः सामायिकं नाम चारित्रविशेष स्तत्मधानः संयतः अथवा तेन चारित्रविशेषेण संयत इति सामायिकसंयतः१ । 'छेदोचट्ठावणियसंजए' छेदोपस्थापनीयसंयतः २, 'परिहारविसुद्धियसंजए' परिहारविशुद्धिकसंयतः ३, 'मुहुभसंपरायसंजए' सुक्ष्नसंपरायसंयतः४, 'अहक्खायसंजए' यथाख्यातसंयतः ५, । एतेषामर्थों गाथाभिर्वक्ष्यते-तत्र 'सामाइयसंजए णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते' सामायिक संयतः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्त इति प्रश्नः, भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! 'दुबिहे पन्नत्ते' द्विविधो-द्विपकारका गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐला पूछा है-'कह णं भंते ! संजया पन्नत्ता' हे भदन्त ! संयत कितने प्रकार के कहे गये हैं ? उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं-'गोथमा ! पंच संजया पन्नत्ता' हे गौतम ! संयत पांच प्रकार के कहे गये हैं । 'लं जहा' जो इस प्रकारसे हैं-'सामाइय संजए १ छेदो. वट्टावणियसंजए २ परिहारविमुद्रियसं जए ३, सुहमसंपरायसंजए ४, अहक्खायसंजए ५' । सामायिकसंयत १ छेदोपस्थापनीयसयत २ परिहारविशुद्धिक संथत ३ सूक्ष्मसंपराय संपत ४ और यथाख्यातसंयत ५ । चारित्रविशेष का नाम सामायिक है । यह सामायिकरूप चारित्रविशेष जिस संयत्त का प्रधान होता है वह सामायिक संयत है ? अथवासामायिकरूप चारिश्न विशेष से जो संपत होता है वह सामायिक संयत है । छेदोपस्थापनीय संयत, परिहारविशुद्धिक संयल आदि का स्वरूप गाथाओं द्वारा कहा जायणा।। वारने सधन श्रीगीतमस्वाभीमे प्रभुने मे पूछयु छ है-'कइ णं भंते ! संजया વન્નર હે ભગવનું સંય કેટલા પ્રકારના કહેલા છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં प्रभुश्री गीतमस्वामीन ४ छे ४-'गोयमा! पच सजया पन्नत्ता' हे गौतम ! सयता पांय ४२॥ ४९सा छे. 'त जहा' त म प्रमाणे छे. 'सामाइय संजए १ छेदोवद्वावणियसंजए २ परिहारविसुद्धियसंजए ३ सुहुमसंपरायसंजमे ४ अहक्खायसंजए ५' सामायि संयत १ छेोपस्थानीय सयत २ परिहार વિશુદ્ધિક સંયત ૩ સૂમસાંપરાય સયત ૪ અને યથાખ્યાત સંયત પ, ચારિ વિશેષ જે સયતનું પ્રધાન (મુખ્ય) હોય છે. તે સામાયિક સંયત કહેવાય છે, અથવા સામાયિક રૂપ ચારિત્રવિશેષથી જે સંયત હોય છે, તે સામાયિક સંયત કહેવાય છે કેદપસ્થાપનીય સંયત, પરિહારવિશુદ્ધિક સંયત વિગેરેનું સ્વરૂપ ગાથાઓથી કહેવામાં આવશે,
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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