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________________ trafat टीका श०२५ उ. ६ सू०१३-३५ परिमाणद्वारनिरूपणम् २५५ मानकान् स्नातकान् प्रतीत्य- अपेक्ष्य स्याद-कदाचित् अस्ति भवति स्यात्-कंदाचित् नास्ति न भवति 'जह अस्थि' यदि अस्ति भवति तदा- 'जहन्ने एक्को वा दो वा तिन्निवा' जघन्येन एको वा द्वौ वा त्रयो वा एकसमये जायन्ते स्नातकाः, 'उक्को सेणं अहमयं' उत्कर्षेणाष्टशतम्-अष्टोत्तरशतपमापक मुम्कर्ष नो भवतीति । 'पुण्त्रपडिवन्नए पडुच्च जहन्तेगं कोडिपुहुत्त' पूर्वप्रतिपन्नकान् स्नातकान् मतीत्य अपेक्ष्य जघन्येन कोटिपृथक्त्वम् द्विकोटिव आरभ्य नव कोटिपर्यन्तम्- 'उनको सेण वि कोडिgहुतं' उत्कर्षेणापि कोटिपृथक्त्वमेवेति ३५ | सिप अस्थि सिय नस्थि' हे गौतम ! प्रतिपद्यमान स्नातकों की अपेक्षा से एक समय में स्नातक कदाचित् होते भी हैं और कदाचित् नहीं भी होते हैं । 'जङ्ग अस्थि' यदि वे होते हैं तो 'जहन्ने णं एक्को वा दो या तिनि वा' कम से कम एक साथ एक अथवा दो अथवा तीन होते हैं और 'उकोसेणं असयं' उत्कृष्ट से १०८ तक एक साथ होते हैं । तथा - 'पुण्यपडिवन्नए पडुच्च' पूर्वप्रतिपन्न स्नातकों की अपेक्षा लेकर स्नातक एक समय में 'जहन्नेणं कोडिपुरुन्त उहोसेण वि कोडिपुत्त' कम से, कम द्विकोटि से लेकर ९ कोटि तक एक साथ होते हैं और उत्कृष्ट से भी इतने ही एक साथ एक समय में होते हैं । || ३५ परिमाण द्वार कथन समाप्त ॥ अल्पबहुत्व द्वार कथन 'एएसि णं भंते ? पुलाग उपडि सेवणाकुसील - कसाय कुसील नियंठसिणाघाणं कधरे कमरे जाव विसेाहिया वा fe अस्थि यि स्थि' हे गौतम! प्रतिपद्यमान स्नातअनी अपेक्षाथी मे સમયમાં સ્નાતકો કાઇવાર હાય પણ છે, અને કાઇવાર નથી પણ હાતા 'जइ अस्थि' ले तेथे। होय छे, 'जहणणेणं एक्कों वा दो वा तिन्नि वा' माछामां भेोछा शे! साथै थे! अथवा मे अथवा त्रयु होय छे. 'उकोंसेण अट्टसय उत्सृष्टथी १०८ उसो भाउ सुधी मेड़ी साथ होय हे तथा 'पुव्व पडिवन्नए पडुच ' पूर्व प्रतिपन्न स्नातअनी अपेक्षाथी स्नात४ सुधी शो समयमा 'जहन्नेणं कति उक्कोसेण वि कोडिपुहुत्त" सोछाम छामे उरोस्थी ने નવ કરેાડ સુધી એકી સાથે હાય છે અને ઉત્કૃષ્ટથી પણ એટલા જ કાળ સુધી એક સમયમાં એકી સાથે હાય છે. આ રીતે પરિમાણુદ્બાર કહ્યું છે. પરિમાણુદ્રાર સમાપ્ત હવે છત્રીસમા અલ્પમર્હુત્વ દ્વારનું કથન કરવામાં આવે છે. 'एएसि णं भंते! पुलागब उस पडि सेवणाकुसील - कसायकुसील नियंठ सिणायाणं कयरे कयरे जाव विसेसाहिया वा' हे भगवन् ३५२ भानु स्व३५
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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