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________________ २५८ मंगवतीस्त्र एकसमयेन जायन्ते तत्र अनुसयं खरगाणं' अगतं क्षपकाणाम् क्षपश्रेणिमता साधूनाम् अष्टोत्तरशतं भवति तथा-'चउपन्न उक्सामगाणे' चतुः पञ्चाशत् उपशम. कानाम् उपशमश्रेणिमतां चतुः पञ्चागद्भर्यात अपयोर्मलने द्विषष्टयुत्तरशतं भवति प्रतिपयमानकानां निग्रन्थानां सदैव उत्पद्यामानानाम् उत्कर्पत इति । 'पुवपडिचन्नए पहच्च सिय अस्थि सिय नात्य' पूर्वप्रतिपन्नकान् निन्यान् प्रतीत्य स्यादस्ति स्यान्नास्ति, 'जइ अस्थि' यदि अस्ति अति तदा-'जहन्नेणं एक्को वा दो वा तिग्नि वा' जघन्येन एको वा द्वौ वा भयो वा सहै। जायन्ते निन्या , 'उक्कोसेणं सयाहुत्त' उत्कर्षेण शतपृथक्त्यम् द्विशतादारभ्य नवशतपर्यन्ता निम्रन्या एकदा जायन्ते उत्कर्पत इति । 'सिणायाण पुच्छा' स्नातकाः खलु भदन्त एकसमये कियन्तो भवन्तीति पृच्छा प्रश्ना, भगवानाह-गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ? 'पडिवज्जमाणए पडुच्च सिय अस्थि सिय नत्यि' प्रतिपद्यहै। इनमें 'अहलयं खयमाणं चउबन्ने उक्सामगाणं' १०८क्षपकणिपाले निर्ग्रन्थ होते हैं और 'चउधन्न उवामगाणं' ५४ उपशम श्रेणिथाले निग्रन्थ होते हैं 'पुव्यपडिबलए पडच्च सिय अस्थि सिय नस्थि' तथा पूर्व प्रतिपन्नक निग्रन्थों को आश्रित करके निर्ग्रन्थ एक समय में कदाचित् होते हैं और कदाचित नहीं भी होते हैं । यदि वे होते है तो 'जहन्नेगं एक या दो बालिनिवा' जघन्य से एक अथवा दो अथवा तीन होते हैं और 'उकोलेणं' उत्कृष्ट से 'लय हुत्त' दो सौ से लेकर ९ सौ तक होते हैं । यह सब कथन एक समय में उनके होने का | 'लिणाक्षणं पुन्च्छा' हे भदन्त ! एक समय में स्नातक कितने होते हैं ? उत्तर में प्रमुत्री कहते हैं-'गोयमा ! पडिबजमाणए पडुच्च सय, खवगाण' चउवन्ने उबसामगाणं' १०८ मे से म8 १५४ श्रेणीवाणा नी- हाय छे. अने चउवन्ने उवसामगाणं' ५४ यापन श्रेणी नया हाय छे. 'पुवपडिबन्नए पडुच्च खिय अस्थि सिय नत्थि' तथा પૂર્વ પ્રતિપન્નક નિર્ચનો આશ્રય કરીને નિગ્રન્થ એક સમયમાં કોઈવાર हाय छे, म वा२ नथी ५५ हात ले त हाय छे. तो 'जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिन्नि वा' धन्यथी मे अथवा मे अथवा त्राय छ, भने, 'उक्कोसेण' Seeी 'सयपुहुत्त' माथी २६ नवसे सुधी काय છે. આ સઘળું કથન એક સમયમાં તેઓને હોય છે. सिणाया णं पुच्छा' 8 सगवन् समयमा स्नात है। डाय १ मा प्रश्न उत्तरमा सुश्री ४९ छे ४-गोयमा! पदिवजमाणए पडुन
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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