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________________ भगवती सूत्रे स्थानसन्निकर्ष इति । 'संखेज्जगुणहीणे वा' संख्ये गुणहीनो वा भवेत् एकस्य पुलाकस्य चरणपर्यवपरिमाणं कल्पनया सहस्रदशकं द्वितीयप्रतियोगिपुलाकचरणपर्यवपरिमाणं च सहस्रम् (१००० ) ततश्चोत्कृष्टसंख्येयकेन कल्पनया दशकपरिमाणेन गुणकारेण गुगितसहस्रं जावन्ते दशसहस्राणि स च राशिः (१००००) तेन उत्कृष्टसंख्येयकेन कल्लनया दशकपरिमाणेन गुणकारेण हीनः - अनभ्यस्त इति संख्येयगुणहीनः प्रथमपुकाकस्य स्वस्थानसन्निकर्ष इति । 'असंखे जगुणहीणे वा' असंख्येयगुणहीनो वा भवेत्, एकस्य पुलाकस्य चरणपर्यर्वपरिमाणं कल्पनया दगसहस्राणि (१००००) द्वितीय प्रतियोगिपुलाकचरणपचपरिमाणं च शतद्वयम् उतथ लोकाकाश प्रदेशपरिमाणेनासंख्येयकेन कल्पनया पञ्चाशत्परिमाणेन गुणकारेण गुणितं शतद्वयं जायन्ते दश महस्राणि स च ज्जगुणहीणे वा' ऐसा जो कहा गया है लो इसका मतलब ऐसा हैमान लीजिये एक प्रथम पुलाक की चारित्र पर्यायों का प्रमाण १०००० है और द्वितीय प्रतियोगी पुलाक की चारित्र पर्यायों का प्रमाण १००० है । तथा संख्यात का प्रमाण १० हैं, अब इस दशरूप उत्कृष्ट संख्यात से १००० को गुणित करने से १०००० संख्या आती हैं । सो यह १००० संख्यारूप राशि १०००० की अपेक्षा संख्यातगुण हीन कही जाती है । इसी प्रकार प्रथम पुलाक की चारित्रपर्यायों से द्वितीय पुलककी चारित्र पर्यायें संख्यात गुणहीन होती हैं। 'असंखेज्जगुणहीणे वा' ऐसा जो कहा गया है सो उसका नात्पर्य ऐसा है मान लेना चाहिये कि एक पुलाक की चारित्र पर्यायें १०००० है और दूसरे पुलाक की चारित्र पर्यायें असंख्यातगुण हीन हैं - यहाँ असंख्यात का प्रमाण २०० है । यहां गुणकार का प्रमाण ५० है । २०० को ५० से गुणित करने पर તેના હેતુ એ છે કે–માના કે એક પહેલા પુલાકના ચારિત્ર પર્યાયાનુ પ્રમાણ ૧૦૦૦૦] દસ હજારનું છે. અને ખીજા પ્રતિયેાગી પુલાકના ચારિત્ર પર્યંચાનુ પ્રમાણ ૧૦૦૦ એક હજારનુ' છે તથા સંખ્યાતનું પ્રમાણુ ૧૦ ઇસ છે. આ દસ રૂપ ઉત્કૃષ્ટ સખ્યાતથી ૧૦૦ હજારને ગુણુવાથી ૧૦૦૦૦] દસ હજારની सौंभ्या गावे छे. या १००० ] मर३५ राशि (ढगसेो) १०००० ] इस डे. રની અપેક્ષાએ સંખ્યાતગુણુ હીન કહેવાય છે, એજ રીતે પહેલા પુલાકના ચારિત્ર પર્યાયથી મીજા પુલાકના ચારિત્ર પર્યા। સખ્યાતગણુા હીન હોય છે. 'अस खेज्जगुणहीणे वा' याप्रमाणे ? हेवामां आव्यु छे, तेनु तात्यय એવુ છે કે-એક પુલાકના ચારિત્રપાઁયા ૧૦૦૦ દસ હજાર છે અને ખીજા પુલાકના ચારિત્રયા મસખ્યાતગુણુ હીન છે. અહીંયાં અસ ખ્યાતનુ
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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