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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ खू०८ पञ्चदशं निकर्पहारनिरूपणम् ४७ शतद्वयम्, द्वितीयपतियोगिपुलाचरणयपरिमाणं नवसहस्राणि अष्टौ च शतानि (९८००) ततः पूर्वभागलब्धं शतद्वयं तत्र मक्षिप्यते, जातानि दशसह स्राणि, ततोऽसौ लोकाकाशपदेशपरिमाणासंख्येयक भागहारलब्धेन शतद्वयेन हीन इत्यसंख्येयमागहीनः, प्रथमपुलाकस्य स्वस्थानसन्निकर्ष इति । 'संखेज्जइ भागहीणे वा' संख्येयभागहीनो वा भवेत् । पूर्वोक्तकल्पितपर्यायराशेर्दशसहस्रस्य (१००००) उ-कृष्टसंख्यकेन कल्पनया दशकपरिमाणेन भागे हृते लब्धं सहस्रम् (१००००) द्वितीय प्रतियोगि पुलाकचरणपर्यवपरिमाणं नव सहस्राणि (९०००) पूर्वभागलब्धं च सहस्रं तत्र प्रतिष्यते, जातानि दशसहस्राणि, ततोऽसौ उत्कृष्ट संख्येयभागहारलब्धेन सहस्रेण हीन इति संख्येयभागहीनः, प्रथमपुलाकस्य स्वझना चाहिये मानलीजिये असंख्यात का प्रमाण ५० है। इनका भाग पूर्वोक्त उत्कृष्ट संयमस्थान पर्यायों में देने से २०० लब्ध आते हैं। इन दो सौ को उत्कृष्ट संयमस्थान पर्यायों में से हीन कर देने पर-जो ९८०० आते हैं वे असंख्याल भाग हीन हैं। ऐसे असंख्यात भाग से हीन उत्कृष्ट चारित्रपर्यायें एक पुलाक की चारित्र पर्यायों से दूसरे पुलाक की होती हैं। इसी प्रकार 'संखेज्जइमागहीणे वा' ऐसा जो कहा गया है-सो इसका मतलब ऐसा है मानलीजिये संख्यात का प्रमाण१० हैं। इस १० का भाग पूर्वोक्त उत्कृष्ट संगमस्थानपर्यायों में देने से लन्ध १००० आते हैं इन एक हजार को उत्कृष्ट संयमस्थानपर्यायों में से घटाने पर ९००० बचते हैं-तो ये नौ हजार जैसी एक पुलाक कीअपेक्षा दसरे पुलाक की संख्यातभाग हील चरित्रपर्यायें हैं । 'संखे. ખ્યાતનું પ્રમાણ ૫૦ પચાસ છે. તેને ભાગ પૂર્વોક્ત ઉત્કૃષ્ટ સંયમ સ્થાનના પર્યામાં દેવાથી ર૦ બસે લબ્ધ થાય છે. આ બસને ઉત્કૃષ્ટ સંયમસ્થાન પર્યામાંથી હીન કરવાથી ૯૮૦૦ અઠ્ઠાણુસે આવે છે, તે અસંખ્યાતભાગ હીન કહેવાય છે એવા અસંખ્યાતભાગેથી હીન ઉત્કૃષ્ટ ચારિત્ર પર્યાય એક घुसाना यानि पायाथी मी साना राय छे. मे प्रमाणे 'संखेज्जा भाग हीणे वा' को प्रमाणे रे - मा मेवा छ -भाना સંખ્યાતનું પ્રમાણ ૧૦ દસ છે. આ દસ ભાગ પૂર્વોક્ત ઉત્કૃષ્ટ સંયમ સ્થાનના પર્યાયમાં દેવાથી લબ્ધ ૧૦૦૦) એક હજાર આવે છે. એક હજારને ઉત્કૃષ્ટ સ્થાનના સંયમ પર્યાયોમાથી ઘટાડવાથી ૯૦૦૦ નવ હજાર બચે છે. તે નવ હજાર એક પુલાકની અપેક્ષાથી બીજા પુલાકના સંખ્યાતमा डीन यात्रि पर्याय छे. 'सखेजगुणहीणे वा' के प्रमाणे रे युछे
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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