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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.६ सू०६ प्रयोदशं गतिद्वारनिरूपणम् १२९ 'एवं बउसेवि एवं पुलाकवदेव बकुशोऽपि बकुशविपयेऽपि पुलाकवदेव अविराधनं पतीत्य इन्द्रादिरूपेणोत्पत्तिः न तु अहमिन्द्रतया, विराधनं प्रतीत्य तु अन्यतरस्मिन् उत्पद्यतेति । एवं पडिसेवणाकुसीलेवि' एवं पुलाकवदेव प्रतिसेवनाकुशीलो ऽपि पतिसेवनाकुशीलस्यापि पूर्वरदेव व्यवस्थाऽगन्तव्येति। 'कसायकुसीले पुच्छा' कषायकुशीला खल्ल भदन्त । देवे स्पधमानः किमिन्द्रतया उत्पद्येत सामानिकतयोत्पद्येत त्रायस्त्रिंशत्तयोत्पधेत-लोकपालतयोत्पधेत-अहमिन्द्रतया वो त्पतेति पृच्छा-प्रश्नः । भगवानाह 'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! करदेता है अथवा लब्धि का प्रयोग करता है तो उस स्थिति में यह . विराधक होने के कारण अन्यतर भजनपति आदि में उत्पन्न हो जाता है। "एवं बउसे वि' इसी प्रकार का कथन बकुश के विषय में भी जानना चाहिये । अर्थात् यदि वकुश अपने ज्ञान आदिको की विराधना नहीं करता है तो वह इन्द्रादिरूप से उत्पन्न हो सकता है पर अहमिन्द्ररूप से उत्पन्न नहीं होना है और यदि वह ज्ञानादिकों की दिराधना करदेता है तो भवनवासी आदिकों में उत्पन्न हो जाता है। 'एवं पडिसेवना कुसीले वि' इसी प्रकार का कथन प्रति लेवना कुशील के विषय में भी जानना चाहिये । 'कसायकुसीले पुच्छा' हे भदन्त ! कषायकुशील साधु जो कि देशों में उत्पन्न होता है तो क्या वह इन्द्ररूप से उत्पन्न होता है ? अथवा सामानिक देवरूप से उत्पन्न होता है ? अथवा चायस्त्रिंशत् देनरूप उत्पन्न होता है ? अथवा लोकपाल रूप से उत्पन्न होता है ? अथवा अहमिन्द्रदेव रूप से उत्पन्न અથવા લબ્ધિનો પ્રયોગ કરે છે. તો તે સ્થિતિમાં તે વિરાધક થવાના કારણે भी नयति बिगैरे वोमा ५-1 Mय छ, ‘एवं बउसे वि' र પ્રમાણેનું કથન બકુશના સંબંધમાં પણ જાણવું જોઈએ. અર્થાત્ જે બકુશ પિતાના જ્ઞાન વિગેરેની વિરાધના કરતા નથી. તે તે ઈદ્રાદિ રૂપથી ઉત્પન્ન થઈ શકે છે. પરંતુ અહમિદ્રપણથી ઉત્પન્ન થઈ શકતા નથી. અને જે તે જ્ઞાનાદિની વિરાધના કરે છે, તે ભવનવાસી વિગેરેમાથી કોઈ પણ એક દેવમાં Sपन्न य जय छ ‘एवं पडिसेवणाकुसीले वि' से प्रभाणेनु थन प्रति सेना शासना स मां पर सभा. 'कसायकुसीले पुच्छा' है समपन् કષાય કુશીલ સાધુ કે જે દેવોમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે શું તે ઈંદ્રપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા સામાનિક દેવપણ થી ઉપન થાય છે ? અથવા ત્રાયઅિંશત્ દેવપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા લેકપ લપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે? અથવા અહમિદ્રપણાથી ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુશ્રી भ० १७
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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