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________________ १२४ भगवती सूत्रे उत्पद्यते इति । पुलामापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तदाह - 'णवरं' इत्यादि, 'णवरं उक्कोसेणं अच्चुए कप्पे' नवरमुत्कर्षेणाच्युतकल्पे समुत्पद्यते । पुलाकप्रकरणे उत्कर्षतः सहस्रारे उत्पत्तिः कथिता अत्र तु अभ्युदे कल्पे समुत्पत्तिः कथिता एतावदेव उभयोवैलक्षण्यम् अन्यत्सर्वं समानमेवेति । 'पडि सेवणाकुसीले जहा वउसे' प्रतिसेवना कुशीलो यथा व कुशः, यथा कालगतस्य वशस्त्र देवलोके उत्पत्तिः, तत्रापि न सौधर्म वानव्यन्तरज्योतिष्केषु किन्तु वैमानिकेषु तत्रापि जघन्येन सौधर्मकल्पे उत्कर्षेणाच्युतकल्पे तथैव प्रतिसेवना कुशीलस्यापि तत्तद्रूपेण सर्वमत्रगन्तव्यमिति । 'कसायकुसीले जहा पुलाए' कपयकुशीलो यथा पुलाकः, यथा कालगतस्य पुलाकस्य देवलोके गतिः प्रदर्शिता तत्रापि वैमानिकेष्वेव तत्रापि जघन्येन सौधर्मकल्पे तथैव से सौधर्मकल्प में उत्पन्न होता है, यह सब कथन पुलाक के प्रकार जैसा ही समझने का है । 'नवरे' किन्तु पुलारुकी अपेक्षा यहाँ यह विशेषता हैं कि 'उक्कोणं अच्चुत रुप्पे' उत्कृष्ट से अच्युतकल्प में उत्पन्न होता है । क्यों कि पुलाक के कथन में पुलाक की उत्पत्ति उत्कृष्ट से सहस्रार देवलोक में कही गई है । चाकी का और तब कथन यहां पुंलाक के ही जैसा है । 'पडि सेवणाकुसीले जहा वउसे' प्रतिसेवना कुशील का उत्पाद भी बकुश के उत्पाद जैसा ही जानना चाहिये । प्रति सेवना कुशील मरकर देवलोक में ही उत्पन्न होता है - अन्यत्र नहीं, देवलोक में भी वह भवनवासी, वानव्यन्तर एवं ज्योतिष्क इनमें उत्पन्न नहीं होता है किन्तु वैमालिक देवों में ही उत्पन्न होता है - वहां पर भी वह जघन्य ले सौधर्म देवलोक में और उत्कृष्ट से अच्युतकल्प में उत्पन्न होता है । 'कसायकुनीले जहा पुलाए' पुलाक के उत्पाद के छे. वैभानिअम या ते धन्यथा सौधर्म उसने उत्कृष्टथी 'णवरं ' उक्कोंसे अच्चुए कप्पे अभ्युपमां उत्पन्न थाय छे પુલાકના કથન કરતાં એજ આ કથનમાં અંતર છે. કેમકે પુલાકના કથનમાં પુલાકની ઉત્પત્તિ ઉત્કૃષ્ટથી સહસાર દેવલેાકમાં કહેલ છે. ખાકીનું તમામ કથન અહિયાં પુલાકના प्रथन प्रभा ४ छे. तेभ सभयु' 'पडि सेवणाकुसीले जहा बउसे' प्रतिसेवना કુશીલ મરીને દેવલેાકમાં જ ઉત્પન્ન થાય છે. ખીજે નહી' અને દેવલાકમાં પણ તે ભવનવાસી કાવ્યન્તર અને જ્યેાતિષ્કમાં ઉત્પન્ન થતા નથી પરંતુ વૈમાનિક દેવામાં જ ઉત્પન્ન થાય છે અને વૈમાનિક દેવામાં પણ તે જન્મન્યથી સૌધર્મ દેવલેટમાં અને ઉત્કૃષ્ટયી અચ્યુતકલ્પમાં ઉત્પન્ન થાય છે. 'सायकुसीले जहा पुलाए' बुझाउना उत्पादनी प्रेम उपाय हुशीलनेा उत्याह
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
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