SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 130
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०५ भगवती सूत्रे 'णो ओसजिणी णो उपदिणीकाले होना' नो वणिजो उत्र्पणीका भवेत् सामान्यतः कालस्त्रिविधो भवनि अवसर्पिणीकाला उत्सर्पिणीकारः नो अवसर्पिणी नो उत्सर्पिणी काळच तत्र भरतैरवतक्षेत्रेषु आयो हो अवसर्पिणी, उन्मर्पिणीheat भवतः, तथा तृतीयः कालो नो अवसर्पिणी नो उत्सर्पिणी नामकः महाविदेह हैमवतादि क्षेत्रेषु भवतीति तत्र करिकाले कुत्रक्षेत्रे पुलको जायते इति प्रश्नः, भगवानाह - 'गोमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम! 'ओसपिणोरालेवा होज्जा' refootकाले वा भवेद पुलाक', 'उस्तष्पिणी काले वा होज्जा' उत्सर्पिणीकाले ar भवेत् 'णो ओपिणी णो उत्सपिणीकाले वा जा' तो अवसर्पिणी नो पुलाक पया अवसर्पिणीकाल में होता है अथवा उत्सर्पिणीका में होता है ? अथवा 'नो श्रसपिणी णो उस्सप्पिणीकाले वा होज्जा' नो अवसर्पिणी नो उत्सर्पिणीकाल में होता है ? सामान्य से काल तीन प्रकार का होता है । अणीकाल, उत्सर्पिणीयोल और नो अर्पणी नो उत्सर्पिणीकोल, इनमें से भरत क्षेत्र और ऐरवत क्षेत्र इन दो क्षेत्रों में आदि के दो अवसर्पिणीकाल और उत्सर्पिणी काल होता है । तथा तृतीयकाल तो अवसर्पिणी नो उत्सर्पिणी काल महाविदेह और हैमवतादि क्षेत्रों में होता है। इसी अभिप्रायले गौतमस्वामी ने प्रभुश्री से ऐसा प्रश्न किया है कि पुलाफ साधु किस काल में किस क्षेत्र में उत्पन्न होता है ? उसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं- 'गोयमा ! ओसपिणी काले होज्जा, उस्सप्पिणीका ना होज्जा, जो ओलपिणी णो उस्सप्पिणी काले वा होज्जा' हे गौतम! पुकारू अवसर्पिणी काल में अणमा होय छे ? } अवसर्पिली अजमा होय छे ? अथवा 'नो ओपिणी णो उस्सप्पिणी काले वा होज्जा' नो उत्सर्पिणी नो अवसर्पिणी अणसां द्वेय छे. સામાન્ય પ્રકારથી કાળ ત્રણ પ્રકારને હાય છે, અવસર્પિણીડાળ, ઉત્સર્પિણીકાળ અને ન અવસર્પિી ના ઉત્સર્પિણીકાળ તેમાથી ભરતક્ષેત્ર અને અરવતક્ષેત્ર આ એ ક્ષેત્રમાં આદિના બે અવસર્પિણી કાળ અને ઉત્સર્પિણી કાળ હૅય છે. તથા ત્રીજે કાળ ને અવસર્પિણી, ને ઉત્સપિČરીકાળ--મહાવિદેહ અને હંમવત વિગેરે વિગેરે ક્ષેત્રોમા હેાય છે એજ અભિપ્રાયથી શ્રીગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને એવે। પ્રશ્ન કર્યાં છે કે-પુલાક સ ધુ કયા કાળમાં અને કયા ક્ષેત્રમા ઉત્પન્ન थाय छे ? या प्रश्नना उत्तरमा अनुश्री गौतमस्वाभीने हे छे - 'गोयमा ! ओसप्पिणीकाले वा होज्जा, उस्सप्पिणी काले वा होज्जा णो ओसप्पिणी जो उस्वप्पिणी- काले वा होज्जा' हे गौतम! चुसाई भूवसर्पिणी अपमां यासु
SR No.009326
Book TitleBhagwati Sutra Part 16
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages708
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy