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________________ ७७२ भगवतीस्त्रे योजसमयस्थितिको भवति जीवः नो द्वापरयुग्मसमयस्थितिको नो वाकल्पोजसमयस्थितिको भवति जीव इति । 'नेरइए णं भंते ! पुच्छा ?' नैरयिकः खल्ल भदन्त ! पृन्छा ? हे भदन्त ! नैरयिकः किं कृतयुग्मसमयस्थितिकः योजसमयस्थितिको द्वापरयुग्मसमयस्थितिकः कल्योजसमयस्थितिको वा भवतीति प्रश्नः? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'सिय कडजुम्मसमयटिइए-जाव सिय कलिभोगसमयटिइए' स्यात्कदाचित् कृतयुग्मसमयस्थितिको यारत्कल्योजसमयस्थितिकः । नारकजीवानां भिन्न भिन्नस्थितिकत्वात् कदाचित् -कृतयुग्मसमयस्थितिको भवति, कदाचित योजादिकल्योजान्तसमयस्थितिको भवतीति । 'एवं जाव वेमागिए' एवं नारकवदेव वैमानिकपर्यन्तो जीवः कदाचित् नहीं कहा गया है, न द्वापरयुग्मसमय की स्थितिवाला कहा गया है और न कल्योज समय की स्थितिवाला कहा गया है । अथ श्री गौतमस्वामी प्रभुश्री से ऐसा पूछते हैं 'नेरइए णं भंते ! पुच्छा' हे भदन्त ! नरयिक जीब क्या कृतयुग्मसमय की स्थितिवाला है ? अथवा योजसमय की स्थितिवाला है ? अथवा द्वापरयुग्मसमय की स्थितिवाला है ? अथवा कल्योजसमय की स्थितिवाला है ? इसके उत्तर में प्रभुश्री कहते हैं'गोयना! सिय कडजुम्मासमयहिहए जोव सिय कलिओगसमयटिइए' हे गौतम ! नारक जीव भिन्न २ स्थितिवाला होने से कदाचित् कृतयुग्म समय की स्थितिवाला होता है कदाचित् योजसमथ की स्थितिवाला होता है कदाचित् द्वापरयुग्म समय की स्थितिवाला होता है कदाचित् कल्योज समय की स्थितिवाला होता है। 'एवं जाव वेमाणिए' इसी प्रकार से नारक के जैसे ही वैमानिकपर्यन्त के जीव સમયની સ્થિતિવાળો કહ્યો નથી. તેમ દ્વાપરયુગ્મ સમયની સ્થિતિવાળે, અથવા કજ સમયની સ્થિતિવાળો કહ્યો નથી. वे श्री गौतमस्वामी प्रभु श्रीन से पूछे छ -'नेरइए णं भंते ! पुच्छा' હે ભગવર્નરયિક શું કૃતયુગ્મ સમયની સ્થિતિવાળે છે? જ સમયની રિથતિવાળો છે? અથવા દ્વાપરયુગ્મ સમયની સ્થિતિવાળે છે ? અથવા કલ્યાજ समयनी स्थितिवाणी १ मा प्रशन उत्तरमा प्रसश्री छे है-'गोयमा ! सिय कलिओगसमयदिइए जाव सिय दावरजुम्मसमयट्रिइए' है गौतम ! ना२४ જીવ જુદી જુદી સ્થિતિવાળો હોવાથી કોઈવાર કતયુમ સમયની સ્થિતિવાળા હોય છે. કેઈવાર જ સમયની સ્થિતિવાળો હોય છે કેાઈ વાર દ્વાપરયુએ સમયની સ્થિતિવાળો હોય છે. કોઈવાર કલ્યાજ સમયની સ્થિતિવાળા હોય છે. 'एव जाव वेमाणिए' मे शत नानी भर वैमानि सुधाना छ।
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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