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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२५ उ.४ ०३ जीवादि २६ द्वाराणां कृतयुग्मादित्वम् ७७१ अय-स्थितिमाश्रित्य जीवादि वथैव निरूप्यते- 'जीवे णं' इत्यादि । 'जीवे णं मंते । किं कडजुम्मनमयहिए पुच्छा ? जीवः खलु भदन्त ! किं कृतयुग्मसमय स्थितिकः : पृच्छा ? हे भदन्त ! जीवः किं कुतयुग्मसमयस्थितिक ज्योजसमयस्थिठिक: द्वापरयुग्मसमयस्थितिकः - कल्योजसमवस्थितिको वेति गौतमस्वामिनः प्रश्नः ? भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा ! कडजुम्मसमपट्टिइए' कृतयुग्मसमयस्थितिक, सामान्यतो जीवस्य स्थितिरखीताऽनागतवर्त्तमानात्मकः सर्वस्मिन्नेव काळे भवति अतः कालत्रयविवक्षयाऽनन्तसमयात्मकत्वात् जीवः कृतयुग्मसमयस्थितिक इति कथ्यते । 'नो तेभोग० नो दात्रर० नो कळिओगसमय द्विइए' नो होते हैं । तथा-विधान की अपेक्षा से वे कृनयुग्मप्रदेशावगाढ भी होते है यावत् कल्ोजप्रदेशावगाढ भी होते हैं । अथ श्री गौतमस्वामी प्रसुश्री ले ऐसा पूछते हैं- 'जीवे णं भंते! किं कडजुम्म समयहिए पुच्छा' हे भदन्त ! एक जीव क्वा कृतयुग्म समय की स्थितिवाला है ? अथवा योज समय की स्थिति वाला है ? अथवा द्वापरयुग्मसमय की स्थितिवाला है ? अथवा कल्योज समय की स्थितिवाला हैं ? इस गौतमस्वामी प्रश्न का समाधान करते हुए प्रभुश्री गौतम स्वामी से कहते हैं - 'गोयमा ! कडजुम्मसमयहिए' हे गौतम! सामान्य रूप से जीव की स्थिति अतीत अनागत एवं वर्त्तमानरूप समस्त काल में होती है | अतः कालत्रय की विवक्षा से अनामयात्मक होने से जीव कृतयुग्मसमय की स्थितिवाला कहा गया है 'नो तेओग० नो दावर०, नो कलिओग समय इिए' किन्तु योजसमय की स्थिति बाला હાય છે. મૈાજ વિગેરે પ્રદેશાવગાઢ હાતા નથી. તથા વિધાનની અપેક્ષાથી કૃતયુગ્મ પ્રદેશાવગાઢ પશુ હાય છે, યાવત્ કયેાજ પ્રદેશાવગાઢ પણ હાય છે. हवे श्रीगीतमस्वामी अनुश्रीने येवु छे छे छे - 'जीवे णं भंते ! कि कडजुम्मसमयहिए पुच्छा' हे भगवन् मे शु कृतयुग्भ समयनी स्थितिવાળેા છે? અથવા ચૈાજ સમયની સ્થિતિવાળે છે ? અથવા દ્વાપરયુગ્મ સમયની સ્થિતિવાળા છે? અથવા યેાજ સમયની સ્થિતિવાળા છે ? શ્રી ગૌતમસ્વામીના આ પ્રશ્નનું સમાધાન કરવા શ્રી મહાવીર પ્રભુ શ્રી ગૌતમસ્વામીને કહે છે કે'गोयमा ! कडजुम्मसमय ट्टिइए' हे गौतम! सामान्यपाशाथी अपनी स्थिति, ભૂતકાળ, ભવિષ્યકાળ અને વર્તમાનકાળ રૂપ દરેક કાળમાં હાય છે. જેથી ત્રણે કાળની વિવક્ષાથી, અન ંત સમય રૂપ હાવાથી જીવ કૃતયુગ્મ સમયની સ્થિतिवाणी अडेस छे, 'नो तेओगे० नो दावर० नो कलिओगसमय इिए' यो
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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