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________________ भगवतीय अणुवंधो जहन्नेणं बाबीसं सागरोत्रमाई' स्थितिरनुवन्धश्च जघन्येन द्वाविंशतिः सागरोपमाणि प्रथमवेयकदेवलोके जघन्येन द्वाविंशतिसागरोपमममितैव स्थिति स्तेषां भवतीति । 'उकोसेणं एकतीसं सागरोक्माई' उत्कर्षेण एकत्रिंश त्सागरोपमत्स्थितेरेव सद्भावादिलि 'सेसं तं चेव' शेपम् संस्थानावगाहनास्थित्यनु पन्धातिरिक्तं सर्वमुत्पादपरिमाणादिकं तदेव आनतदेवप्रकरणोक्तमेवे भवतीति भावः। 'कालादेसेणं जहन्नेणं वावीसं सागरोवमाइं वासपुहुत्तममहियाई कालादेशेन जबन्येन द्वाविंशतिः सागरोपमाणि वर्षपृथक्त्वाभ्यधिकानि वर्षपृथक्त्वाधिकद्वाविंशति सागरोपमात्मक: कालादेशेन कायसंवेधो भवतीति तथा-'उक्कोसेणं तेणउति सागरोवमाई तिहि पुनकोडीहि अमहियाई उत्कर्षेण विनवतिः सागरोपमाणि तीनों कालों में वैकियसमुद्घात नहीं करते हैं। पर ये पांच समुद्घात यहां लब्धि की अपेक्षा से ही कहे गये हैं। 'ठिई अणुवंधो जहन्नेणं धावीसं सागरोचमाई' स्थिति और अनुबन्ध जघन्य से २२ सागरोपम का होता है-अर्थात् प्रथम ग्रेवेयक देवलोक में जघन्य स्थिति २२ साग रोपम की है और 'उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाई उत्कृष्ट स्थिति नौवें अवेयक'मैं ३१ लागरोपम की है। 'ससंत चेव' संस्थान और अवगाहना, स्थिति और अणुबंध इनके सिवाय और सब उत्पाद परिमाण आदि बारों का कथन आनतदेव प्रकरण में जैसा कहा गया है वैसा ही है। कालादेसेणं जहन्नेणं बाबीसं सागरोवमाई, वासपुछत्तमभहियाई' काल की अपेक्षा काथवेध जघन्य से वर्ष पृथक्त्व अधिक २२ सागरोपम का है और 'उनकोसेणं तेणउति सागरोवमाइं સમુદ્ઘ ત કરતા નથી. પરંતુ અહિયાં લબ્ધિની અપેક્ષાથી જ પાંચ સમુહૂંઘાત उपभो माया छे. 'ठिई अणुबंधो जहन्नेण वावीस सागरोवपाइं स्थिति અને અનુબંધ જઘન્યથી ૨૨ બાવીસ સાગરોપમને હેય છે. અર્થાત પહેલા अरेय पोमा धन्य स्थिति २२ मापीस सागरी५मनी छे. सन 'उक्कोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाइ' Gट स्थिति नवमा वयमा ३१ मेत्रीस सायापभनी छ. 'सेसं तं चेव' संस्थान भने समान स्थिति भने અનુબંધ આ શિવાય ઉત્પાદ, પરિમાણ વિગેરે દ્વારે સંબંધી કથન આનત वना ४२ मा २ प्रमाणे वामां भाव्यु छे, मे४ प्रमाणे छे. 'काठादेसेणं जहन्नेणं बोवीसं सागरोवमाई, वासपुहुत्तमम्महियाई' नी अपेक्षायी કાયસંવેધ જઘન્યથી વર્ષ પૃથફત્વ અધિક ર૨ બાવીસ સાગરોપમને છે. 'उक्कोसेणं वेणउति सागरोदमाइ विहि पुत्वकोड़ीहिं अभहियाई' अष्ट्या
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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