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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ.२० २०६ देवेभ्यः पतिर्ययोनिकेपूत्पातः .३३९. '. त्पत्तिर्भवतीति भावः । 'जह वपोत्रचन्नगवेमाणियदेवेतिो उज्जनि' यदि कल्योपपन्नकवैमानिकदेवेभ्य उत्तयन्ते तदा-कि सौधर्मकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेन्य उत्पधन्ते यावत्सहस्रारकल्पोपपन्न कवैमानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते इति प्रश्नः । भगवानाह-हे गौतम ! सौधर्मकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्य आगत्य ‘पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु समुत्पद्यन्ते तथा-'जाब महस्सारकपोत्रवन गवेमाणिदेवेहितो वि उववज्जति यावत् सहस्रारकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेभ्योऽपि आगत्यं समुत्पः . धन्ते किन्तु 'नो आणय नाव णो अच्चुयकप्पोववन्नगवेमागियदेवेहितो उवव..' जंति' नो आनतकलयोपपन्नकवैमानिकदेवेभ आगत्य यावत् न वा अच्युन कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवेन आगत्योत्पद्यन्ते अत्र यावत्पदेन प्राणतारण कलेगो "अब पुनः गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं-जह कप्पोवग वेमाणिय... देवेहितो उववति ' हे भदन्त ! यदि करगे पन्नवैमानिक.देवों से .. आये हुए जीवों का ही संज्ञी पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पाद होता है... तो क्या सौधर्मकल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आये हुए जीवों का वहां उत्पाद होता है ? अथवा यावत् अच्युत कल्पोपपन्न, वैमानिक देवों से , आये हुए जीवों का वहां उत्पाद होता है ? इसके उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं- 'गोयमा' हे गौतम ! सौधर्मकल्पोपन्न वैमानिक देवों, से आये हुए जीवों का भी वहां उत्पाद होता है और यावत्सहस्रार कल्पोपपन्न वैमानिक देवों से आये हुए जीवों का भी वहां उत्पाद होता .. है। परन्तु-'नो आणय जाय णो अच्चुयरुप्पोववन्नगवेमाणियदेवेहितो. उववजंति' आनत यावत् अच्युन वैमानिक देवों से आये हुए जीवों 6 'गीतमस्वामी प्रभुने शथी मे पूछे थे है-'जइ कप्पोवगवेमाणियदेवहितो उववज ति' गन्ने ४८.५पन्न वैभानिः वामाथी આવેલા ઈવેને જ સંજ્ઞી પંચેન્દ્રિયતિર્યંચ નિકમાં ઉત્પન્ન થાય છે. તે સૌધ કપિપપનક વૈમાનિક દેમાંથી આવેલા ને ઉત્પાદ થાય છે કે સહસ્ત્રાર, કંપન્નક વિમાનિક દેવે માંથી આવેલા છે ને ત્યાં ઉત્પાત થાય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રમુ, ગૌતમસ્વામીને. કહે છે કે – होम गीत'! सौधम !५५-न वैमानि माथी भावेal . જીવોને પણે ત્યાં ઉત્પાદ થાય છે, અને યાવતું સહસ્ત્ર ૨ કપ પત્રક વૈમાનિક ગૅમાંથી આવેલા છે પણ ત્યાં ઉત્પાદ થાય છે. પરંતુ જો आर्णय जाव' णो अच्चुय कप्पोवनगवेमाणियदेवेहितो उववज विमानत પ્રમાણિત થાવત અધુતકલ્પના વૈમાનિક દેવાંમાંથી આવેલા જીવેને ત્યાં ઉત્પાત
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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