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________________ ૮ भगवती सूत्रे ग्योनिका वैमानिकदेवेभ्य आगस्पोत्पद्यन्ते तदा- 'किं कप्पोवनगवे मागिय देवे हिंतो उववज्जति' किं कल्पोपपन्न त्रेमानिकदेवेप आगन्योलवन्ते - कंप्याः ईमाणि यदेवेदितो उववज्जंति' कल्पाती वैमानिकदेवेभ्य आगत्योत्पद्यन्ते इति नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'कप्योत्र वैमाणियदेवेदितो उपज्जेति कल रोपपन्नकवैमानिक देवेभ्य आगत्योपयत्वे 'नो कप्पायवे मा जियदेवे हिंनो उपवनंति' नो न तु कल्पातीत नानिकदेवेभ्य उत्पद्यन्ते कल्पोपपन्न कवैमानिकेभ्य आगतानामेत्र जीवानां पञ्चेन्द्रियतिर्यक्षु समु अव गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं - 'जह, वेमायि देवेहिनो वज्रंति' यदि संज्ञी पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव वैमानिक देवों से आकरके उत्पन्न होते हैं तो 'किं कप्पोबनगवेमाणियदेवेर्हितो उवत्रति' क्या कल्पोपपत्रक वैमानिकदेवों से आकरके वे उत्पन्न होते हैं ? अथवा ' कप्पाईयवेमाणियदेवेर्हितो उवज्जति' कल्पानीत वैमानिक देवों से आकर के वे उत्पन्न होते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु गौतम से कहते हैं - 'गोमा' हे गौतम! 'कप्पोववन्नगये माणियदेवेर्हितो उपवज्जति' वे कल्पोपपन्न वैमानिकदेवों से आकर के वहां उत्पन्न होते हैं 'नो कप्पाईमाणि देवेहिंतो उववजंति' किन्तु कल्पातीन वैमानिक देवों से आकरके वे वहां उत्पन्न नहीं होते हैं, क्योकि कल्पोपपन्नक वैमानिक देव से आये हुवे जीवों की ही पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिको में उत्पाद होता है कल्पातीत वैमानिक देवों से आये हुये जीवों का वहां खुत्पाद नहीं होता है। ✓ } ', 'हवे गौतमस्वामी प्रभुने शोवु पूछे छे - 'जइ वेमाणियदेवे हि सेr li उववज्जति' ले संज्ञी यथेन्द्रियतिर्यय येोनित्राणो वैमानि देवामांगी भावीने उत्पन्न थाय छे, तो 'किं काववन्नवेमा जियदेवे हि तो उववज्ज ति શુ’ પાપપન્નક વૈમાનિક દેવામાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? ‘कप्पाइयवेमाणियदेवेहि’तो !, उब्वज्जति' मातीत वैमानि देवोभांथी અથા આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમ સ્વામીને “કહે ५ ४- गोयमा ? हे गौतम! कप्पोववन्नगवेमाणियदेवेहि तो उववज्ज'ति' तेथे કલ્પે૫૫ન્નક વૈમાનિક દેવામાંથી આવીને ત્યાં ઉત્પન્ન पाईयमाणियदेवे हि तो उववज्र्ज्जति पाती वैमानि देवामाथी साथीने थाय छे. 'ना તેઓ ત્યાં ઉત્પન્ન થતા નથી. કેમકે-કાપપન્નક વૈમાનિક દેવેશમાંથી આવેલા જીવાના જ પંચેન્દ્રિયતિયચ્ ચેાનિકોમા ઉત્પાત થાય છે. કલ્પાતીત વૈમાનિક ઢવામાંથી આવેલા જીવાને ત્યાં ઉત્પાત થતેા નથી
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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