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________________ ३४० भगवतीस्चे। पपन्नकवैमानिकदेवानां सङ्ग्रहो भवतीति तथा च सौधर्मादारभ्य सहस्रारपर्यन्त- : कल्पोपपन्नकवैमानिकदेवाः पश्चेन्द्रियतिर्यक्षु समुत्पद्यन्ते न तु आनतप्राणतारणा च्युतकल्पोपपन्नकवैमानिकदेवाः पञ्चन्द्रियतियक्षु समुपयन्ते इति भावः, 'सो.. - हम्मदेवे गं भंते' सौधर्मदेवः खल भदन्त ! 'जे मविए पंबिदियतिरिक्खनोणिएसु उववज्जित्त' यो भव्यः पश्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेषु उत्पतम् 'से णं भंते । केव: इयकाल टिइएम उववज्जेज्ना' स खलु भदन्त ! कियकालस्थितिकपश्चेन्द्रिय-: तिर्यग्योनिकेषु उत्पधेतेति प्रश्नः । भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे . गौतम ! 'जहन्नेणं अंगोमुहू तट्ठिइएम' जघन्येन अन्तर्मुह तस्थितिकपश्चेन्द्रियविर्य- . का वहां उत्पाद नहीं होता है। यहां यावत्पद से प्राणत, आरण कल्पोपपन्नक वैमानिक देवो का संग्रह हुआ है। तथा च सौधर्म से लेकर सहस्रार पर्यन्त के कल्पोपपन्नक वैमानिक देव पश्चेन्द्रियतिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं, आनत, प्राणन, आरण और अच्युत इन कल्पोपपन्नक देवों का वहाँ उत्पाद नहीं होता है। अघ गौतम प्रभु से ऐसा पूछते है --'सोहम्मदेवे णं भंते ! जे भविए - पंचिंदियतिरिक्खजोणिएप्लु उववज्जित्तर' हे भदन्त ! जो सौधर्म कल्प का देव पञ्चेन्द्रिय तियग्योनिकों में उत्पन्न होने के योग्य है 'से णं, भंते ! केवइयकालट्ठिदएप्लु उववज्जेज्जा' वह कितने काल की स्थितिवाले पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है-गोयमा' हे गौतम ! वह 'जहन्नेण अंतोमुहत्तहिहएस्सु' जघन्य से एक अन्तर्मुहर्त की स्थितिवाले पंचेन्द्रियनिर्यञ्चों में उत्पन्न होता થતું નથી. અહિયાં યાવત્પદથી પ્રાણત, આરણ કપનક વૈમાનિક દેવી શહેણ કરાયા છે. તથા સૌધર્મ દેવ લોકથી લઈને સહસ્ત્રાર સુધીના, કપ, પક વૈમાનિક પંચેન્દ્રિય તિર્યમાં ઉત્પન્ન થ ય છે. આત પ્રાણત આરણ, અને અશ્રુત આ કલ્પપપત્તક દેવાને ત્યાં ઉત્પાદન થતું નથી. गौतमवामी प्रभुने मे पूछे छे 8-मोहम्मदेवेणं भंते ! जे भविए पचिदियतिरिक्खज़ोणिएसु उत्रवज्जित्तए' 3 , महन्त २ सौधमा ४८५५ पान हे ५ यन्द्रियतिय य योनिमा ५-1 थाने योग्य छ, ‘से णं भते.'. केवइयकालदिइएसु उववज्जेज्जा' ते टता जनी स्थिति पयन्द्रियतिय य ચેનિર્કોમાં ઉત્પન્ન થાય છે. આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ ગૌતમસ્વામીને કહે "४- गोयमा !' गौतम ! : जहन्नेणं अंतोमुहुत्तट्ठिइएसु'- धन्यथा मे અમુંહતની સિધતિવાળા પંચેન્દ્રિયતિર્યંચ નિકોમાં ઉત્પન્ન થાય છે. અને
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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