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________________ २२८ भगवती गमगा भाणियवा' एवं शेषा अपि सप्त गमका भणितव्या, एवम्-अनन्तरोक्त गमद्वयक्रमेण शेपा:-सप्त गमकाः-वृवीयचतुर्थपञ्चमपष्ठसप्तमाष्टमनवमगमा मणितव्याः, अथैवं शब्दोपादानात् यादृशी स्थितिर्जघन्योत्कृष्टभेदात् आधगमयो. नारकाणां कथिता तादृशी एव स्थितिमध्यमेऽन्तिमेऽपि गमत्रयेऽपि किं स्यात् ? इति प्रश्ने सति नेत्युत्तरम् , मध्यमेषु पश्चिमेषु च गमत्रिके स्थितिनानात्वसद्भावात् तदेवाह-'जदेव' इत्यादि, 'जहेब नेर यउद्देमए पनि पंचिदिएहि समं नेरइयाणं' यथैव नैरयिकोदेश के संक्षिपञ्चन्द्रियैः समयिकाणाम् यथैव नैरयिकोद्देशकेऽधिकृत शतकस्य प्रथमे उद्देशके संक्षिपश्चेन्द्रियतिबग्योनिः सह नारकजीवानां मध्यमेषु त्रिषु से औधिक प्रथम गम में कथित कायसंवेध से हलवितीय गम में कथित कायसंवेध में भिन्नता है 'एवं सेला बि सत्त गममा भणियन्या इस अनन्तरोक्त गम दूध के क्रम के अनुसार तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ट, सप्तम अष्ठम और नवम ये सातगम भी कह लेना चाहिये। यहां 'एवं सेसा वि' ऐसे कथन से जैसी स्थिति जघन्य और उत्कृष्ट के भेद से आदि के दो गमों में-प्रथम द्वितीय गमों में नारकों की कहो गयी है उसी प्रकार की स्थिति मध्यके और अन्त के तीन गमकों में भी प्राप्त होती है तो क्या वह इन गमकों में भी वैसी ही है सो इस प्रकार की शङ्का के समाधान निमित्त 'यहां वह ऐसी नहीं है। ऐसा उत्तररूप कथन स्वतः ही समझ लेना चाहिये । यही बात 'जहेव नेरइयउद्देसए सन्निपंचिं. दिएहिं समं नेरइयाण' इस सूत्रपाठ द्वारा सूत्रकार ने स्पष्ट की है। ४ यस वेधथी ! मी01 ममा ४डस यसवधा पा छे. 'एवं सेसा वि खत्त गमगा भाणियव्वा' मा प्रभारी ने गभामा ४ भ अनुसार ત્રીજે, ચે થી પાંચમે છઠ્ઠો, અને સાતમે, આઠમે અને નવમો એ સાતે ગમે पर ही सेवा. महियां एवं सेसा वि' मा शतना ४थनथी धन्य मने ઉત્કૃષ્ટના ભેદથી જે પ્રમાણેની રિથતિ પહેલા બે ગામોમાં નારકેની કહી છે. એ જ પ્રમાણેની સ્થિતિ મધ્યના અને અંતના ત્રણ ગમેમાં પણ પ્રાપ્ત થાય છે, તે શું? તે આ ત્રણ ગમોમાં પણ તેજ પ્રમાણેની સ્થિતિ છે? આ પ્રમાણેની શંકાના સમાધાન નિમિત્ત “અહિયાં તે એ પ્રમાણેની નથી' આ પ્રમાણેના ઉત્તર રૂપ કથન સ્વયં સમજી લેવું. __ वात 'जहेव नेरइयउद्देसए सन्निपचिदिएहिं समं नेरइयाण' मा સૂત્રપાઠ દ્વારા સૂત્રકારે પ્રગટ કરેલ છે. આ સૂત્રપાઠથી એ સમજાવ્યું છે કે
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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