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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२४ उ. २० सू०१ पञ्चेन्द्रियति० जीवानांमुत्पत्यादिकम् २२९ गमेषु चरमेषु त्रिषु गमेषु स्थितौ परस्परं भेदो भवति तथैवेहापि 'मज्झिमएस य far ft They' नैरयिकाणां मध्यमेषु च त्रिष्यपि गमकेषु तथा - 'पच्छिमएस विसु वि गमपसु' पश्चिमेषु त्रिष्वपि गमकेषु 'ठिह नाणतं भवह' स्थितिनानात्वं भवति प्रथमद्वितीयनमापेक्षया माध्यमिकगमन्त्रये अन्तिमगमत्रये च स्थितौ नानात्वं भेदो भवति इति । 'सेसं तं चेत्र' शेषस्तदतिरिक्त सर्व तदेव - औधिक प्रथमगमवदेवेति । 'सन्त्रस्थ ठिहं संवेह च जाणेज्जा' सर्वत्र स्थिति संवेधं च पार्थक्येन यथायोगं जानीयादिति नवमान्ता गमाः ९ ॥ सू० १ ॥ इससे यह समझाया गया है कि जिस प्रकार से अधिकृत शतक के प्रथम उद्देशक रूप नैरथिक उद्देशक में संज्ञिपंचेन्द्रितिर्यग्योनिकों के साथ नारक जीवों के मध्य के तील गमों में और अन्त के तीन गमों में और स्थिति में परस्पर भेद हैं । उसी प्रकार से यहां पर भी 'सज्झिमएसु य तिसु वि गमएसु' नैरधिकों के मध्य के तीन गमकों में तथा 'पच्छिमएल तिसु वि गमएस' अन्त के तीन गमकों में 'ठिनागतं भव' स्थिति में भिन्नता है । अर्थात् प्रथम द्वितीय गमों की अपेक्षा माध्यमिक गमनय में और अन्तिम गमन्त्रय में स्थिति में भेद है । 'झेलं तंचेष' बाकी का और सब कथन औधिक प्रथम गम के जैसे ही है 'सन्यस्य ठिहं संदेहं च जाणेज्जा' सर्वत्र स्थिति और संवेध में भिन्नता है । इस प्रकार से ये नौवें गम तक के गम हैं | ०१ ॥ જે પ્રમાણે અધિકૃત શતકના પહેલા દેંશા રૂપ નૈયિક ઉદ્દેશામાં સંશી પંચેન્દ્રિય તિય ચ ચેાનિકાની સાથે નારક જીવાના મધ્યના ત્રણ ગમેામાં અને છેલ્લા ત્રણ ગમેાની સ્થિતિમાં પરસ્પર લે છે, એજ પ્રમાણે અહિયાં પણ 'मज्ज्ञिमएसु य तिसु वि गमपसु' नैरयिोमा मध्यना शु મામાં તથા 'पच्छिम तिसु वि गमएसु' हेटला त्रशु गभीमा 'ठिइनाणत्तं भवइ' स्थितिभां જુદાપણું છે, અર્થાત્ પહેલા અને બીજા ગમ કરતાં મધ્યના ત્રણ ગમેામાં अने छेझा ऋणु गभीमां स्थितिमां नुहाई छे. 'सेस' त' चेव' माडीनु' मोनु तभाभ उथन भौधि! पडेला अभना स्थन प्रभा छे, 'सव्वत्थ ठिङ् स बेह च जाणेज्जा' स्थिति भने सपना इथनभां मन तुहा यागु हे. मा रीते આ નવમા સુધીના ગમે કહ્યા છે, સૂ. ૧૫
SR No.009325
Book TitleBhagwati Sutra Part 15
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1971
Total Pages972
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size59 MB
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