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________________ प्रमेयबन्द्रिका टीका श०२४ उ.१ १०४ जघन्यस्थितिकनैरयिकाणां नि० ३९७ धिल्योपमस्यासंख्यातभागमित्यर्थः । 'एवइयं कालं जान करेजा' एताव कालं यावत्कुत्, अत्र यावत्पदात् एतावत्कालं तिर्यग्र्गात नारकगतिं च सेवेत तथा-एतवन्तमेव कालं ग-यागती-गमनागमने च कुर्शदिति सर्व संगृहयते ६ । 'उकोसकालाटिपज्जसमपन्नि पंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते' उत्कर्ष कालस्थितिकपर्याशापंक्षिपञ्चेन्द्रियतियग्योनिकः खलु भदन्त ! 'जे भविए' यो भव्य। योग्यः । 'रयणप्पभा पुढवीनेरइएमु उववज्जित्तए' रत्नप्रभा पृथिवी नैरयि केषु उपपत्तुम् । ‘से णं भंते' स खलु भदन्त ! 'केवयकाल जाव' कियत्कालस्थिति केषु नैरयिकेषु 'उववज्जेज्जा' उत्पद्यत समुत्पत्ति० लभेत इति प्रश्नः। भगवानाह'गोयमा । हे गौतम ! 'जहन्नेणं दसवाससहस्सटिइएसु' जघन्येन दशवर्ष सहस्र स्थितिकेषु नरयिकेषु 'उववज्जेज्ना' उत्पधेत 'उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखे भहियं उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहर्त अधिक पल्योपम के असंख्यातवें भाग तक 'एवयं कालं जाव करेज्जा' इतनेकालतक तिर्यग्गति और नारकगतिका सेवन करता है और इतनेही कालतक उनमें गमनागमन करता है 'उक्कोसकालहिल्यपज्जत्तअसन्निपंचिंदियतिरिक्खजोणिए णं भंते ! हे भदन्त ! जो पर्याप्त असंज्ञी पचेन्द्रिय तिर्यञ्च उस्कृष्ट काल की स्थिति घाला है और 'जे अविए रयणप्पभा पुढवी नेरइएसु उववज्जित्तए से भंते !' रत्नप्रभा पृथ्वी के नरयिको में उत्पन्न होने के योग्य हैं ऐसा वह जीव 'केवइयकाल जाव उववज्जेज्जा' 'कितने काल की स्थिति वाले नैरपिकों में उत्पन्न होता है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा!' जहन्नेणं दसवाससहस्सटिइएसु०' हे गौतम! वह जबसे दश हजार वर्षे की स्थिति वाले मुहुत्तमम्महियं' थी ५६५ मतभुत अघि पक्ष्या५मना असभ्यातमा भाग सुधी 'एवइय काल जाव करेज्जा' मार सय त तिति भने નારકગતિનું સેવન કરે છે, અને એટલા જ કાળ સુધી તિર્યગતિ અને नारगतिमा गमनागमन रे छ. उकोसकोलछिइयपज्जत्त असन्नि पंचिंदियतिरिक्खजोणिपणं भंते 10 सावन पर्याप्त सशी ५थेन्द्रिय तियय रे ७१ Grge पनी स्थितिवाणा छ, मन 'जे भविए रयणप्पभा पुढवि नरहएसु उववज्जित्तए' से णं भंते । रत्नमा पृथ्वीना नयिमा erurन याने भाग्य खाय मेवात ७१ 'केवइयकाल. जाव उज्जेजा' ८॥ ४७नी રિથતિવાળા નરયિકમાં ઉત્પન્ન ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ गौतमस्वाभान छ गेणं दसवाससहस्सटिइएमः' *
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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