SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०६ भगवतीसरे ___टीक-'अह भंते !' अथ भदन्त ! 'वाइंगणि सल्लइ धुंडई०' वृन्ताको सल्ल. की धुडकी इत्यादि० एवं जहा पन्नघणाए गाहानुसारेण णेय एवं यथामज्ञापनायाः प्रथमपदोक्तगाथानुसारेण नेतव्यम् तथाहि-प्रज्ञापनायाः प्रथम पदम् ‘वाइंगणि सल्लइ धुंडइ य तह काथुरी य जासुमणा रूपी आडइ गीली तुलसी तह माउलिंगीय' इस्यादित आरभ्य 'जारइकेयइ तह गंज पाटलादसिअंकोले' एतत् पर्यन्तं पञ्च गाथा: नेतन्या, प्रज्ञापनाचा माशनुसारेण वृन्ताकीवर्गे वृक्षाणां नामाङ्कनम् वर्तव्यम् कियत्पर्यन्तं गाथा नेतव्याः यारत् गझपाटलादासिअंकोलानाम् 'एएसिणं' एतेषां वृन्ताकोन आरम्प अकोलान्तानाम्-गुच्छजातीय वनस्पतीनां खलु ये जीवाः, 'मूलत्ताए चकमंति' मूलनयाऽवक्रामन्ति ते जीवाः कुत आगत्य मूलादौ समुत्पद्यन्ते इति प्रश्नस्योत्तरस्-तिर्यग्भ्यो वा आगत्य समुत्प___ टीकार्थ-हे भदन्त ! 'वाइंगणि सल्लइ झुडइ०' वृन्ताकी, सल्लकी, धुंडकी इत्यादि वृक्षों के नाम प्रज्ञापना सूत्र के प्रथम पद में कथिक गाथा के अनुसार यावत् गैज, पाटला, दाखी एवं अंकोल तक जानना चाहिये वह गाथा 'वाइंगणि-सल्लइ थंडह य तह कंथुरी य जासुमणा' ख्वी आडइ णीली तुलंसी तह माउलिंगीय' इस प्रकार से है इस गाथा ' से लेकर 'जावइकेयह तह गंजपाडला दासि अंकोले' इस गाथा तक पांच गाथाएं हैं सो इन गाथाओं के अनुसार यहां उन्ताकीवर्ग में वृक्षों का नामाङ्कन गज, पाटल दासी एवं अकोल तक करना चाहिये तो इन घृन्ताकी (वेगन) ले लेकर अकोल तक के ये जितने भी गुच्छ जातीय वनस्पति हैं-हन वनस्पतियों के मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं-वे कहां से आकरके इनमें उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में Part-3 भगवन् 'वाइ'गणि सल्लइ थुडइ०' ताडी, सदसडी थुडी, -વિગેરે વૃક્ષોના નામે પ્રજ્ઞાપના સૂત્રના પહેલા પદમાં કહેલ ગાથા પ્રમાણે “યાવત્ ગંજ, પાટલા, દાસી, અને અંકલ સુધી, સમજવું. આ ગાથા 'बाइंगाणि-सल्लइ, थ डइ, य तह कथुरी य जासुमणा! रुवी आडइ णीली, तुलसी, तह माउलिंगीय०' ! गाथाथी सन 'जावइ केयइ तह गंजपाडला दासिकाले'. 24 गाथा सुधी पांय गाथाय। छ. म गाथामा प्रमाणे અહિયાં વૃત્તાકી વર્ગમાં વૃક્ષોના નામોનું કથન ગંજ, પાટલ, દાસી, અને અંકેલ સુધી કરવું આ વંતકી (રીંગણ)થી લઈને અંકલ સુધીના ગુચ્છાનીજાતના આ જેટલા વનસ્પતિ છે, આ વનસ્પતિના મૂળરૂપે જે જી ઉત્પન્ન થાય છે, તેઓ કયાંથી આવીને તેમાં ઉત્પન્ન થાય છે ?
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy