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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२२ व.४ गुच्छजातीयवनस्पतिमूलगतजीवोत्प०नि०-३०६ ॥ अथ चतुर्थों वर्गः प्रारभ्यते ॥ .. वनीयवर्गे अगस्त्यादिबहुबीजकक्षमूलादिनीवानामुत्पादादिकं वर्णितम्, अथ 'वाइंगणि' आदि सुच्छ मातीयवनस्पतिमूलादिजीवानामुत्पादादिकविवेच; यितुं चतुर्थों वर्ग आरम्मते तदनेन संबन्धेन आयतस्य चतुर्थवर्गस्य इदमादिम सूत्रम्-'अह भंते ! वाइंगणि' इत्यादि। ___ मूलम्-'अह भंते ! वाइंगणि सल्लइ थुडइ० एवं जहा पन्नवणाए गाहानुसारेण #यव्वं जान गंजपाटला दासि अंको. ल्लाणं एएसिणं जे जीवा मूलनाए बकति० एवं एत्थं वि मूलादीया दस उद्देसगा नेयव्वा जाव बीयंति निरवसेसं जहाँ वंसवग्गो सू०१॥ ॥बावीसइमे लए चउत्थो वग्गो समत्तो॥ छाया-'अथ भदन्त ! वृन्ताकी सल्लकी धुंडकी० एवं यथा प्रज्ञापनाया: गाथानुसारेण नेतव्यं यावत् गञ्जपाटलादासिअंकोलानाम् एतेषां खल ये जीवा मूलतयाऽवक्रामन्ति० एवमत्रापि मूलादिका दश उद्देशका नेतव्या यावद्वीजमिति निरवशेष यथा वंशवर्गः ॥मू०१॥ ॥ द्वाविंशतिशतके चतुर्थो वर्गः समाप्तः ॥ चतुर्थ वर्ग का प्रारंभ तृतीयवर्ग में अगस्स्यादिक बहुवीजवाले वृक्षों के मूलगतजीवों के उत्पाद आदि का वर्णन करके अब सूत्रकार 'वाइंगणि' आदि गुच्छ. जातीय वनस्पति के मूलगत जीवों का विवेचन करने के लिये चतर्थवर्ग प्रारंभ करते हैं-इस वर्ग का यह 'अह भंते ! वाइंगणि' आदि सूत्र प्रथम सूत्र है-'अह भंते ! वाइंगणि सल्लइ धुंडह.' इत्यादि। રોથા વર્ગનો પ્રારંભત્રીજા વર્ગમાં અગથિ વિગેરે બહુ બીજવાળા વૃક્ષોના મૂળમાં રહેલ वान पाई विगैरे वन ४रीन वे सूत्रा२ 'बाइगणि' विगरे । વિાળા જાતના વનસ્પતિના મૂળમાં રહેલાં જીવેનું વિવેચન કરવા માટે આ ચોથા વર્ગને પ્રારંભ કરે છે. આ વર્ગનું પહેલું સૂત્ર આ પ્રમાણે છે 'अह भंते 1 वाइंगणि' साहि भ० ३१
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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