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________________ प्रमैrन्द्रिका टीका श०२२ व. १ सू० १ वलेयवनस्पतिमूल गतजीवोत्प०नि० २९३ एए दस उद्देगा' एवम् - उपरोक्त वर्णित मूलकन्दस्कन्धत्वक्शाखापवालपत्रपुष्प फळबीजप्रकारेण एते दश उद्देशका भवन्ति तालनामकमथमनर्गे इति ॥०१॥ इति श्री विश्वविख्यात जगवल्लभ- प्रसिद्धवाचक- पश्चदशभाषाकलितललितकला पालापक्रम विशुद्ध गद्यपद्यनैकग्रन्थ निर्मापक, वादिमानमर्दक- श्री शाहू छत्रपति कोल्हापुरराजमदत्त'जैनाचार्य' पदभूषित - कोल्हापुरराजगुरु - बालब्रह्मचारि - जैनाचार्य - जैनधर्म दिवाकर पूज्य श्री घासीलालवति विरचितायां श्री "भगवती सूत्रस्य " प्रमेयचन्द्रिकाख्यायां व्याख्यायाम् द्वाविंशतिशतकस्य तालनामकः प्रथमवर्गः ॥ समाप्तः २२-१ ॥ प्रवाल इस ताल नाम के प्रथमवर्ग में मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वक्, शाखा, पत्र, पुष्प, फल एवं बीज इस प्रकार के थे १० दश उद्देश होते हैं । सू० १ । जैनाचार्य जैनधर्मदिवाकर पूज्यश्री घासीलालजीमहाराजकृत "भगवती सूत्र " की प्रमेयचन्द्रिका व्याख्याके बावीसवें शतक का ॥ ताल नामका प्रथमवर्ग समाप्त ॥ २२ - १॥ २४४, १५, शामा, अवाब, पत्र, पुण्य, पूज राने जीवट मे रीते हस ઉદ્દેશાઓ હાય છે. પ્રસૂના જૈનાચાય જૈનધમ દિવાકર પૂજ્યશ્રી શ્વાસ લાલજી મહારાજકૃત “ભગવતીસૂત્રની પ્રમેયચન્દ્રિકા વ્યાખ્યાના માવીસમા શતકના તાલ નામના પહેલા વર્ગ સમાપ્ત ૨૨૦૧ ।। फ्र
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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