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________________ ५९२ redie यथं सूत्रे एव प्रदर्शिता इति । सेसं जहा सालीणं' शेषं यथा शालीनाम् शालिकप्रकरणापेक्षया यद्वैलक्षण्यं तत् सूत्रे एव प्रदर्शितम् यत् शिष्टम् तत् सर्वं शालिकवर्गदेव द्रष्टव्यम् । इह भवति प्राचीन गाथा pad 'पत्ते पवाले पुष्फे, फले य बीए य होइ उनवाओ । रुक्खे सुरगणाणं पत्थरसवण्णगंधे ॥१॥ 1 छाया - पत्रे वाले पुष्पे फले च बीजे च भवति उपपातः । वृक्षेषु सुरगणानां प्रशस्तरसवर्णगन्धेषु || १ || इति | सुरगणानां देवानामुत्पाद:- उत्पत्तिः प्रशस्त रसवर्णगन्धवतां वृक्षाणां पत्रे भवाले वीजे च भवति योऽयं प्रशस्तरसवर्णगन्धवान् वृक्षो भवति तस्य मवालादारभ्य वीजान्तेषु देवानामुत्पत्ति भवति नान्यत्र मूलादिपञ्चके इति भावः । ' एवं 'सेसं जहा सालीणं' इस पाठ से सूत्रकार ने यह प्रकट किया है कि - शालिक प्रकरण की अपेक्षा इस प्रकरण में जो भिन्नता है वह तो हमने सूत्र में ही प्रकट कर दी है । पर जहां कोई भिन्नता नहीं है वह सब शालिप्रकरण ही जैसा है अतः उसे प्रकट नहीं किया गया है । यहां प्राचीन-गाथा ऐसी है- 'पत्ते पवाले पुष्फे' इत्यादि । · इस गाथा द्वारा यह प्रकट किया गया है कि देवों का उत्पाद प्रशस्त रस, वर्ण, गन्ध वाले वृक्षों के पत्र में, प्रवाल में, पुष्प में, फल में और पीज में होता है उनके मूल में कन्द में, स्कन्ध में, स्व में और शाखा में नहीं होता है । 'एवं एए दख उद्देगा' इस प्रकार से अभाष्णु सुधीनी छे. तेभ समभवु सेसं जहा खालीण' या पाथी सूत्रारे એ' પ્રગટ કરેલ છે કે-શાલી પ્રકરણની અપેક્ષાએ આ પ્રકરણમાં જે ફેરફાર છે, તે તે સૂત્રમાંજ ખતાવેલ છે. પરંતુ જ્યાં ફેરફાર નથી, તે તમામ શાલી પ્રકરણની જેમ જ સમજવાનું છે તેથી તે ભાગ ગ્રંથ વિસ્તાર ભયથી અહિ 'महेस नथी. मडियां आधीन गाथा या प्रभा छे - 'पत्ते पवाले पुष्फे ४त्याहि આ ગાથાથી એ ખતાવેલ છે કે દેવાના ઉત્પાદ પ્રશસ્ત રસ, વધુ. ગન્ધ राजा वृक्षाना पानभ, डूपणाभां पुष्पाभां णाभां भने श्रीलेमां, थाय छे, तेना भूणमां, भ, अधम, छासमां, मने शामा-डाणासां थतेो नथी. 'पर्व पर दस उद्देगा' भा रीते मा तास नाभना पहेला वर्गभां भूण, ४,
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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