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________________ २०२ भगवती सूत्रे 'एएसि णं भंते' एतेषां खलु भदन्त ! 'जीवा' जीवाः शालिगोधूमादि संबन्धिनो जीवा: 'मूलare aक्कमंति' एतेषां मूलाया अवक्रामन्ति उत्पद्यन्ते 'ते णं भंते । जोना' ते खलु भदन्त ! जीगः 'कओहिंतो उनवज्जंति' केभ्यः स्थानेभ्य आगत्य अत्रोत्पद्यन्ते, 'कि नेरइएहितो' कि नैरयिकेभ्य आगत्य अत्र शारयादी 'उव, ज्जंति' उत्पद्यन्ते किमित्यर्थः । अथवा 'तिरिक्वजोगिएहिंतो वा मणुसेतो वा देवेंहिंतो वा' तिर्यग्योनिकेभ्यो वा मनुष्येभ्यो वा देवेभ्यो वा आगत्योत्पद्यन्ते ? इति प्रश्नः । 'जहा' इत्यादि, 'जहा त्रक्कंतीए तदेव उवत्राओ' यथा व्युत्क्रान्तौ तथैवोपपातः, यथा येन प्रकारेण व्युत्क्रान्तिपदे प्रज्ञापनायाः षष्ठे पदे कथितो जातः समुतिस्तथैव इहापि समुपपातो वर्णनीयः, मज्ञापनायाः पठे पदे एवं वर्णितम् - शाल्पादि मूले ये जीवा उत्पद्यन्ते ते जीवा नो fes * 'अह भंते । सालिचीहिगोधूम जबजब जवाणं' हे भवन्न ! शालि, व्रीहि, गोधूम - गेहूं यावत् जवजवजवक इनके मूलरूप से जो जीव उत्पन्न होते हैं 'लेणं ते! ओहिंतो उववज्र्जति' वे जीव कहां से आकर के उत्पन्न होते हैं ? 'किं नेरहहिंतो जाव उववज्जति' क्या नरक से आकरके शालि आदि में उत्पन्न होते हैं, अथवा 'तिरिक्ख जोणिएहिंतो वा मस्से हितो वा' तिर्यञ्च योनि से आकर के उत्पन्न होते है ? या मनुष्यधोनि से आकरके प्रश्पन्न होते हैं या देवगति से आकरते उत्पन्न होते हैं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं- जहा वक्कंनीर तहेब उचवाओ' हे गौतम! जिस प्रकार से व्युत्क्रान्तिपद में - प्रज्ञापना के छठे पद में जीवों का उपपाद कहा गया है उसी प्रकार से यहां पर भी उसका कथन करना चाहिये प्रज्ञावना के छठे पद में इस प्रकार से वर्णन है के વન્ શાલી, ત્રીડ઼ી ઘહુ' યવત્ જવજવજલક તેને મૂળરૂપે જે જીવા ઉત્પન્ન थाय छे, 'ते णं भंते! कओहिंतो उववज्जति' ते ज्यांथी यावीने उत्पन्न थाय छे. 'कि' ने इरहितो जाव उववज्जंति शु नास्श्री भावीने शादि विशेरेभां उत्पन्न थाय छे ? अथवा 'तिरिक्रखजोणिएहि तो वा मणुस्से हिंतो वा देवेहितो રા' તિયચ ચૈાનિમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા મનુષ્ય ચેાનિમાંથી આવીને ઉત્પન્ન થાય છે ? અથવા દ્વેગતિથી આત્રીને ઉત્પન્ન થાય છે? या प्रश्नना उत्तरभां अलु हे छे - जहा वक्कंतीए तहेव उववाओ' हे गौतम! જે પ્રમાણે વ્યુત્ક્રાંતિપમાં-પ્રજ્ઞાપનાના છઠ્ઠા પદમાં જીવાને ઉષપાત કહે છે; એજ રીતે અહિંયા પણ તેનુ કથન કરી લેવુ. પ્રજ્ઞાપનાના છઠ્ઠા પદમાં
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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