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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०१० सू०१ जी० सोपक्रमनिरुपक्रमायुष्यत्वम् (१२३ इत्यादि, 'नेरइयाणं भंते !' नरयिकाः खलु भदन्त ! 'कि आयकम्पुणा उववज्जति परकम्मुणा उववज्जति' किमात्मकर्मणा ज्ञानावरणादिना उत्पधन्ते, अथवा परकर्मणा उत्पद्यन्ते हे भदन्त ! ये इमे नारका जीवा उत्पद्यन्ते नरकावासे तस्था उत्पत्याः प्रयोजकम् आत्मकर्म अथवा परकर्म वा प्रयोजकम् ? किं स्वसंपादितकर्मवलादुत्पत्ति भवति परसंपादितकर्मवलाद्वा भवती? ति प्रश्नः भगानाह'गोयमा' हे गौतम! 'आयकम्मुणा उपवज्जति नो परकम्मुणा उपवति' आत्मकर्मणा उत्पधन्ते न परकर्मणा उत्पद्यन्ते ये इमे नारकजीवा नरकावासे समुस्पधन्ते तत्र आत्मकृतकर्मणामेव प्रयोजकत्वं न तु परकरकर्मणां प्रयोजकत्वम् , परकृतकर्मणः प्रयोजकत्वे जगद्वैचियव्यवस्थेव लुप्येत कहते हैं-'नेरइयाणं भंते!' इत्यादि-हे भदन्त ! 'नेरहया कि आयकम्मुणा उववनंति परकम्युणा उवकजति नैरथिक क्या अपने ज्ञानावरणादिरूप कर्म से उत्पन्न होते हैं या पर के कर्म से उत्पन्न होते हैं ? तात्पर्य यह है कि शिष्य ने प्रभु से ऐसा प्रश्न पूछा है कि हे अदन्त ! जो ये नारक जीव नरकावास में उत्पन्न होते हैं सो उस उत्पत्ति का प्रयोजक अपना कर्म है या पर का कर्म है ? अर्थात् जीव की उत्पत्ति नरकावास में नारकरूप से जो होती है वह स्वसंपादित कर्म के बल से होती है या पर द्वारा संपादित कर्म के बल से होती है ? इस प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'आयकम्नुणा उववजति, नो पर. कम्मुणा उववर्जति' जीव की उत्पत्ति नरकाचाल में आत्मद्वारा संपा. दित कर्म के बल से ही होती है पर के द्वारा संपादित कर्म के बल से नहीं होती है यदि परकृत कर्म के बल से जीव की उत्पत्ति नरकावास भानु ४२ ४ छ–'नेरइया णं भंते !' याle B मापन नैविहा 'कि आयकम्मुणा उववज्जति' परकम्मुणा ववज्जति' पोताना ज्ञानावरील રૂપ કર્મોથી ઉત્પન્ન થાય છે? કે અન્યના કર્મથી ઉત્પન્ન થાય છે? કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે-શિષ્ય પ્રભુને એવું પૂછયું છે કે-હે ભગવન આ જે નારક નરકાવાસમાં ઉત્પન્ન થાય છે, તે ઉત્પત્તિનું પ્રયોજન પિતાનું જ કમ છે કે અન્યનું કામ છે? અર્થાત્ જીવની ઉત્પત્તિ નારકાવાસમાં નારક પણાથી જે થાય છે, તે પિતે સંપાદન કરેલા કર્મના બળથી થાય છે, કે બીજાએ સંપાદન કરેલા કર્મના બળથી થાય છે ? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભ ४ छ है 'गोयमा! गीतमा 'आयकम्मुणा उववज्जति नो परकम्मुणा उववजति' न२४वासमा पनी पत्तिपात सपान ४२९॥ मना माथी જ થાય છે. અન્ય દ્વારા સંપાદન કરેલા કર્મના બળથી થતી નથી. જે પર
SR No.009324
Book TitleBhagwati Sutra Part 14
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1970
Total Pages683
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size42 MB
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