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________________ भगवती सूत्रे ५५० स्कन्धः कारणस्य परमाणुद्वयस्य कृष्णलोहितवर्णद्वयवत्वेन ततो जायमानद्विमदेशिकाsarat अपि कदाचित कृष्णलोहितरूपवर्णद्वयवानेव भवतीति २ । 'सिप कालए य हालिए य' स्यात् कदाचित् कृष्णश्च पीतश्च यदि जनकं परमाणुद्वयं कृष्णपीतवर्णद्वयवत् तदा कदाचित् कार्यरूपे द्विपदेशिक स्कन्धेऽपि कृष्णपीतवर्णद्वययुक्तोऽवयवी भवतीति ३ । 'लियकालए य सुकिलए य' स्यात् कदाचित् कृष्णश्च शुक्लश्च कृष्णशुक्लद्वयवर्णवत् परमाणुद्वयजनितत्वात् द्विपदेशिकावयत्री अपि कृष्णशुक्लात्मक वर्णद्वयवानेव भवतीति, कृष्णमुख्पकनीलादि शुक्लान्तगौणपर्यायमाश्रित्य चत्वारो भङ्गा जाता इति प्रदर्शितम् अतः परं नीलमुख्यकगौणसकता है तात्पर्य यही है कि एक परमाणुरूप अवयव उसका कृष्ण वर्णों पेत हो और दूसरा परमाणुरूप अवयव उसका नीले वर्ण का न होकर लाल वर्ण वाला हो इस प्रकार से भी वह दो वर्णों से युक्त परमाणु द्वय से जनित होने के कारण कदाचित् कृष्णलोहित रूप वर्ण वाला ही हो सकता है २ 'सिप कालए य हालिद्दए य' यदि वह ऐसा न हो तो कदाचित् वह कृष्ण वर्णवाला और पीनवर्णवाला भी हो सकता है यदि उस द्विदेशी स्कन्ध का एक परमाणु कृष्ण वर्णवाला है और दूसरा परमाणु पीतवर्ण वाला है तो ऐसी स्थिति में उन दोनों परमाणुओं के संयोग से उत्पन्न हुआ वह द्विप्रदेशी स्कन्ध भी कृष्ण एवं पीतवर्णवाला हो जाता है ३ 'सिय कालए य सुकिल्लए य 'यदि वह कृष्ण पीतवर्ण वाला नहीं हो तो वह कृष्ण एवं सफेद वर्णवाले दो परमाणुओं से जन्य होने के कारण कृष्ण और श्वेतवर्ण वाला भी कदाचित् हो सकता है છે કે-એક પરમાણુરૂપ અવયવ તેના કાળાવશુંવાળુ હાય અને ખીજુ પરમાણુ રૂપ અવયવ નીલવર્ણનું ન થતાં લાલ વર્ણવાળુ' હાય આ રીતે પણ તે એ વળેાંથી યુક્ત એ પરમાણુથી થયેલ હાવાથી કદાચિત્ કૃષ્ણ અને લાલ એ वाजा थश छे 'सिय कालए य हालिहे य' भने ले से प्रभावेन હાય તેા કદાચિત તે કૃષ્ણવણુવાળા અને કદાચિત્ પીળાવણુ વાળા પશુ હાઇ શકે છે. જો તે એ પ્રદેશિકસ્યું ધનુ' એક પરમાણુ કાળા વણુવાળું હોય અને ખીજું પરમાણું પીળાવણુ વાળુ હાય તે તે એ સ્થિતિમાં તે બન્ને પરમ ણુઓના સચૈાગથી ઉત્પન્ન થયેલ તે એ પ્રદેશી કોંધ પણ કાળા અને પીળાવણુ વાળા અની જાય છે.૩ 'सिय कालए य सुकिल्लए य' भने ले ते अजा भने भीजावर्षावाजा ન હોય તેા તે કાળા અને સફેતવણુ વાળા એ પરમાણુએથી થયેલ હોવાથી
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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