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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०६९ उ०३ सू०४ पृथ्वीकाथिकानामवगाहनाप्रमाणनि० ३६३ मालिन्ययुक्तम् 'झुझिय' झुशितं म्लानं बुभुक्षितम् एतावदेव न किन्तु 'पिवासियं' पिपासितं पिपासाव्याकुळमिति दुर्वलं शारीरिकबलरहित क्लान्तम्-मानसव्यथाव्यथिवशरीरमित्यर्थः 'जुगलपाणिणा' युगलपाणिना हस्ताभ्यामित्यर्थः 'सुद्धाणंसि' मुर्द्धनि मस्तके 'अभिहणेज्जा' अभिहन्यात् यथा कश्चित् युवा पुरुषः सर्वथा शरीरसमृद्धिमान् हस्ताभ्यां कमपि जीर्णादिविशेषणविशिष्ट वृद्ध मस्तके ताडयेदित्ययः ‘से णं गोयमा! पुरिसे' स खल गौतम ! पुरुषः स जराजर्जरितद्धशरीर इत्यर्थः 'ते णं पुरिसेणं' तेन -पुरुषेण यूना 'जुगलपाणिणा' युगलपाणिना 'मुद्धाणंसि अभिहए समाणे मुर्द्धनि अभिहतः सन् के रिसायं वेयण' कीशी वेदनाम् 'पच्चणुभत्रमाणे विहरई मत्यनुभवन् विहरति बलवता यूना युगलपाणिना मस्तके ताडितो वृद्धपुरुषः कीदृशीं वेदनामनुभवन्नवस्थितो -भवतीति भगवतो वितका गौतम आह-'अणि समणाउसो' अनिष्टं श्रमण ! तृष्णा-तृषा से-जिसका मन अशान्त बना हुआ है। 'आउरं' अतएव जो घवरायासा है 'झुझियं' 'झुझालायासा है या बुभुक्षित है प्यासा है दुबैलशारीरिक बल से जो रहित है क्लान्त-मानसिक व्यथा से जिसका शरीर व्यथित है 'जमलपाणिणा' अपने दोनों हाथों से 'मुद्धाणंसि' मस्तक के ऊपर प्रहार करे अर्थात् सर्व प्रकार से शारीरिक समृद्धि शाली युवापुरुष अपने दोनों हाथों से किसी जीर्णादिविशेषण विशिष्ट वृद्ध पुरुष को उसके मस्तक के ऊपर ताडित करे तो 'सेगोयमा!' हे गौतम! वह जरा ले जर्जेरित हुभा शरीरवाला पुरुष 'तेणं पुरिसेणं.' उस पुरुष के द्वारा मस्तक पर चोट पहुंचाये जाने पर केरिसयं वेयणं' किस प्रकार की वेदना का अनुभव करता है ?-इस प्रकार से प्रभु के द्वारा पूछे जाने पर गौतमने कहा-'अनिट्ठ-समणाउसो डाय आउरे' भने मान रथी २ रा गयेडाय झुझिय' भुयेवा હોય, અર્થાત ભૂખ અને તરસથી વ્યાકૂળ, શારીરિક બલ વિનાને થાકેલે માનસિક પીડાથી જેનું શરીર પીડાવાળું હોય એવા પુરૂષને પૂર્વોક્ત બલવાન पुरुष 'जुगलपाणिणा' पाताना मन डायाथी 'मुद्धाणसि' भाथा ५२ પ્રહાર કરે અર્થાત દરેક પ્રકારના શારીરિક બલ વિગેરેથી સમૃદ્ધિવાળો યુવાન પુરુષ પોતાના મનને હાથોથી કોઈ જીણું શીર્ણ વિગેરે વિશેષણુંવાળા વૃદ્ધ सपना माथा ५२ भारे तो 'से गं गोयमा ! ७ गोतम! ते गढपाथी नरत शरीरवाणे पुरुष 'देण पुरिसेण' ते पुरुष द्वारा भरत १२ धा भारवामां मावे त्यारे केरिसयं वेयणं' वी वनाना अनुस ४२१ मा પ્રમાણે પ્રભુ દ્વારા પૂછવામાં આવ્યું ત્યારે ગૌતમ સ્વામીએ કહ્યું
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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