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________________ भगवती सूत्रे રૂટ स्वकर्मज्ञा, 'कुसला' कुशला आसोच्य कार्यकारिणी 'मेहावी' मेधाविनी सकृच्छुतदृष्टकर्म परिज्ञानवती 'निउणा' निपुणा उपायारम्हकारिणी इति ( मग. श. १६ उ. ४) 'तिक्खाए' तिक्ष्णायां कठोरायाम् ' वइरामईए' वज्रमय्यां वज्रवत् कठि नायामित्यर्थः ' सण्डकरणीए' श्लक्ष्णकरणी सूक्ष्म चूर्णकारिणी पेपणशिला तस्याम् ' तिक्खेणं' तीक्ष्णेन 'वइरामएणं' वज्रमयेन वज्रवत् कठोरेण 'वट्टवरएणं' adhara प्रधानलोष्टकेन गोलाकारपेपणप्रस्तरेण 'लोढा' इति लोकमसिन 'एगं महं पुढवीकायं एकं महत् पृथिवीकायिकम् 'जतु गोलासमाणं, जतु गोलसमानम् डिमरूपक्रीडनकं जतुगोलकप्रमाणं नातिमहत् तत् 'गहाय' गृहीत्वा 'पडिसाहरिय पडिसाइरिय' प्रतिसंहृत्य प्रतिसंहृत्य 'पडिसंखिविय पडि दौडना है इस रूप व्यायाम में जो दक्ष हो 'छेका' प्रयोगज्ञ हो ' दक्खा' शीघ्रता से प्रत्येक कार्य करनेवाली हो 'पत्तट्ठा' अपने काम को जाननेबाली हो 'कुसला' काम करनेवाली हो 'मेहावी' एकबार में ही सुने गये अथवा देखे गये काम को जाननेवाली हो 'निडणा' निपुण हो - उपाया. रम्भकारिणी हो (भग० श० १६ उ० ४) ऐसी वह दासी 'तिक्खाए' तीक्ष्ण-कठोर 'वइराम एणं' वज्रमय 'सण्हकरणीए' सूक्ष्म चूर्णकरनेवाली शिला के ऊपर 'तिक्खेण वहरामएणं' तीक्ष्ण वज्रमय कठोर वज्र के जैसी कठिन 'ववरणं' गोल आकारवाली लोढी से पीछे, क्या पीसे तो कहते हैं - ' एगं महं पुढवीको इयं जतुगोलासमाणं' लाख के गोला जैसे पृथिवीकायिक को पीले पीसते समय वह शिला पर और लोढी पर चिपक गये उस पृथिवीकायिक को 'पडिसाहरिय २' बार २ छुडावे और छुडाकर પ્રમાણે છે. આવા પ્રકારના વ્યાયમમાં જે કુશળ ડાય છેöા' પ્રયાગને अणुवावाजी होय ‘दक्खा' शीघ्रताथी हरे कार्य १२वावाजी होय 'पत्तट्ठा' घोताना अर्थने लगुवावाजी हाय 'कुसला' दुशणताथी अभ उरवावाजी हाय 'मेहावी' शोभ वार सांलणेसा अथवा लेयेसा अमने लगुनारी होय 'निउणा' निपुणु हाय-उपायनेो मारल उ२नारी होय (ल, श. १६७. ४) भेवी माहासी. 'तिक्खाए' तीक्ष्य हैठोर 'वइरामएणं' वनमय 'सण्ह करणीए' सूक्ष्म लघु यू उरवावाजी शिक्षा-पत्थर उभर तिक्खेण वइरामरणं' तीक्ष्य वलमय उठौरअर्थात् वन्न वा उठे 'वट्टवर एणं' गोज આકારના ઉપરવટણાથી વાટે. શું वाटे तेने भाटे आहे - ' एगं महं पुढत्रीका इयं जतुगोलासमाणं' सामना ગેાળા જેવા પૃથ્વિકાયિકને વાર્ટ અને વાટતી વખતે તે શિલા પર અને ઉપર बटला पर थोंटी गयेला ते पृथ्वी थिए- 'पडिसाहरिय पड़िसाहरिय' वारंवार
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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