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________________ प्रमेन्द्रका टीका श०१८ उ० ८ सू० १ कर्मवन्धस्वरूपनिरूपणम् १५९ सुतस्सं णं' तस्य भावितात्मनोऽनगारस्य खलु 'ईरियावहिया किरिया कज्जइ ' प्रिर्यापथिकी क्रिया क्रियते भवति 'णो संपराइया किरिया कज्जइ' नो सांपरायिकी क्रेया क्रियते, हे गौतम! युगममाणदृष्ट्या गच्छतो भावितात्मनोऽनगारस्य यदि मार्गे प्राणिविराधनं भवेत्तदा तस्य ऐर्यापथिकी क्रिया क्रियते भवति, सांपरायिकी क्रिया तु न भवतीतिभावः । ' से केणद्वेणं भंते । एवं बुच्चर' तत्केनार्थेन दन्त । एवमुच्यते यत् ऐर्यापथिकी क्रिया भवति न सांपरायिकीति प्रश्नः भगवानाह - ' हा ' इत्यादि । 'जहा सत्तमसए संबुडुद्देसए' यथा सप्तमशत के सप्तमे संदेश कथितं तथैव इहापि वोद्धव्यम्, कियत्पर्यन्तं सप्तमशतकीय प्रकरणं को 'ईरियाहिया किरिया कज्जह' ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है | 'णो सांपराइया' सांपरायिकी क्रियां नहीं लगती है। तात्पर्य कहने का यह है कि चलते समय युगप्रमाण दृष्टि से भूमिका संशोधन करते हुवे भावितात्मा अनगार को मार्ग में प्राणि की विराधना हो जाती है, तो उसका ऐर्यापथिकी क्रिया ही लगती है सांपराधिकी क्रिया नहीं लगती है क्योंकि यह क्रिया प्रमाद के योगवाले अनगार को लगती है उसके उस समय प्रमाद का योग है नहीं । इसलिये यह क्रिया उसके नहीं लगती है । 'सेकेणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चह' हे भदन्त ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं कि उस भावितात्मा अनगार को ऐर्यापथिकी क्रिया लगती है सांपरायिकी नहीं ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'जहा सत्तमसए संबुडुद्देसए' हे गौतम! इस विषय में जैसा सप्तमशतक के विशेष भरी लय तो ते लावितात्मा मतगारने "ईरिया वहिया किरिया कज्जइ” भैर्यापथि दिया लागे छे. "जो सांपराइया " सांपरायिष्ठी ठिया લાગતી નથી. કહેવાનું તાત્પ એ છે કે ચાલતી વખતે યુગપ્રમાણુ દૃષ્ટિથી ભૂમિનું સ’શાધન કરતાં કરતાં ભાવિતાત્મા અનગારના માર્ગમાં પ્રાણિની વિરાધના થઈ જાય તેા તેને એોંપથિકી જ ક્રિયા લાગે છે સપરાચિકી ક્રિયા લાગતી નથી. કેમ કે સાંપરાયિકી ક્રિયા પ્રમાદના ચગવાળા અનગારને લાગે छे, मडियां प्रभावना योग नथी तेथी सांपरायिडी डिया सागती नथी. "से केणणं भंते ! एवं वच्चइ" हे भगवन् साथ मेनुं शा अरणथी । छो તે ભાવિતાત્મા અનગારને ઐય્યપથિકી જ ક્રિયા લાગે છે, સાંપરાયિકી ક્રિયા सागती नथी ? या प्रश्नना उत्तरभां अलु उडे छे - " जहा सत्तमसए संबुडु -
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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