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________________ भगवतीसूत्रे १५८ इत्यर्थः 'चट्टयपोते वा वर्तकपोतो वा वर्तकः-पक्षिविशेप: 'वटेर' इति प्रसिद्ध तस्य पोतो-डिमः 'कुलिंगच्छाए वा कुलिंगच्छायः-पिपीलकादि सदृशो जन्त विशेषः 'परियावज्जेज्जा' पर्यापयेत-म्रियेत इत्यर्थः 'तस्स णं भंते !' तस्या भावितात्मनोऽनगारस्य खल्ल भदन्त ! 'किं ईरियाबहिया किरिया कन्जइ' कि ऐयोपथिकी क्रिया क्रियते भवति अथवा 'संपराइया किरिया कज्जई' साम्परायिकी क्रिया क्रियते भवति ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम । 'अणगारस्स णं भावियप्पणो जात्र' अनगारस्य खलु भावितात्मनो यावत् , अत्र यावत्पदेन 'पुरओ दुह मो जुगमायाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कु डपोते वा वट्टयपोते वा कुलिंगच्छाए वा परियावज्जेज्जा' इत्यन्तस्य ग्रहणं भवति बच्चा 'वयपोते या' वर्तक-चटेर का बच्चा' 'कुलिंगच्छाए वा पिपी. लिका जैसा जन्तुविशेष परियावज्जेज्ना' आकर दबकरके मर जाता है तो 'तस्स ण भंते !" तो उस भावितात्मा अनगार को 'किं ईरिया बहिया किरिया कज्जा संराच्या किरिया कज्जइ' क्या ऐयापथिकी क्रिया लगती है या सांपरायिकी क्रिया लगती है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम! 'अणगारस्स णं भावियप्पणो जाव पुरओ दुहओ जुगमायाए पेहाए रीयं रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कुडपोते वा वयपोते वा कुलिंगच्छाए वा परियावज्जेज्जा' दोनों ओर के प्रदेश को तथा सामने की भूमि को युगमात्र दृष्टि से देखकर गमन करते हुए भावितात्मा अनगार चरण के नीचे दबकर मुर्गी का बच्चा यो घटेर का बच्चा या पिपीलि का के जैसा कोई जन्तु विशेष भर जाता है तो उस भावितात्मा अनगार " डयो" दुनु सक्थु "वट्टयपोते वा" पत्त-क्टर, मतनुं सरयु "कुलि गच्छाए वा" 1 24 तु विशेष "परियावज्जेज्जा" मावस माईन भी तय छे. तो "तस्स णं भते !" ते मावितात्मा सनमारने "कि ईरिया बहिया किरिया कज्जइ अहवा संपराइया किरिया कज्जइ" भैपथिही या લાગે છે કે સાંપરાયિકી ક્રિયા લાગે છે? તેના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે-- "गोयमा" है गीतम! "अणगाररस णं भंते ! भाविअपणो जाव पुरमो दुहओ जुंगमायाए पेहाए रीय रीयमाणस्स पायस्स अहे कुक्कुडपोते वा, वट्टयपोते वा कुलिंगच्चाए परियावज्जेम्जा" भन्ने माना प्रशन तथा सामेनी भूभीमा युग પત્ર (ચાર હથિ પ્રમાણ) દષ્ટિથી જોઈને જતાં એવા ભાવિતાત્મા અનગારના પગ નીચે મરવાનું બચ્ચું અથવા બતકનું બચ્ચું અથવા કીડિ જેવું જંતુ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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