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________________ १६० भगवती ज्ञातव्यं ? तत्राह-'जाव' इत्यादि । 'जाब अट्ठो निक्खित्तो' यावद् अर्थों निक्षिप्त एतत्पर्यन्तं तत्रत्यं प्रकरणं ज्ञातम्, तथाहि-अथ केनार्थेन भदन्त । एवमच्या गौतम ! यस्य क्रोधमानमायालोभाः व्यवच्छिन्ना विनष्टास्तस्य ऐपिथिक्य । क्रिया भवति, न सांपरायिकी क्रिया भवतीत्यादि । 'जाव अट्ठो निक्खित्तो' तिः 'से केणटेणं' इत्यादि वाक्यस्य निगमनं यावदित्यर्थः तच्च निगमनं 'से तेणटेणं गोयमा ! एवं वुचई' इत्यादि । 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! जाव विहरई तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति यावहिहरति, हे भदन्त ! ऐर्यापथिकी क्रिया विषये देवानुपियेण यत् कथितं तत् एवमेव सर्वथा सत्यमेव भवद्वाक्यस्याप्तसंवृत उद्देशक में कहा गया है वैसा ही यहां पर भी जानना चाहिये । सप्तमशतक के उद्देशक का प्रकरण यहाँ पर कहां तक का ग्रहण करना चाहिये ? इसके लिये 'जाव अट्ठोणिक्खित्तो' ऐसा कहा गया है कि यहां तक का वह प्रकरण यहां लेना चाहिये । तात्पर्य ऐसा हैं किगौतमने ऐसा पूछा है जिस भाषितात्मा अनगार के क्रोध, मान, माया और लोभ ये कषायें नष्ट हो चुकी हैं । उस भावितात्मा अनगार को ऐयोपथिकी क्रिया ही होती हैं। सांपरायिकी क्रिया नहीं होती है। इत्यादि सो 'जाव अट्ठो निक्खित्तो' यह 'से केणटेणं' इत्यादि वाक्य का निगमन है । 'से तेणटेणं गोयमा! एवं वुच्चई' और वह इस प्रकार से है। 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरह' हे भदन्त ! ऐयोपथिकी क्रिया के विषय में जो आप देवानुप्रिय ने कहा है वह सर्वथा सत्य ही देस" है गीतम. मा विषयमा सातमा शतना संत नामना देशामा પ્રમાણે કહ્યું છે, તે પ્રમાણે અહિયાં પણ સમજવું. સાતમા શતકના સાતમા ઉદ્દેશાનું કથન અહિયાં કયાં સુધીનું ગ્રહણ ४२वातुं छे, ते भाट घुछ है 'जाव अड्छो निक्खित्तो" मे थन सुधार्नु त्यांनु थन माह सभा. તાત્પર્ય એ છે કે-ગૌતમ સ્વામીએ ભગવાનને એવું પૂછયું છે કે જે ભાવિત્મા અનગારના ક્રોધ, માન, માયા, અને લેભ એ કષાયે નાશ પામ્યા છે, તેવા ભાવિતાત્મા અનગારને ઐયપથિકી જ ક્રિયા લાગે છે. સાંપરાયિકી हिया हाती नथी. त्य.8 थिन "जाव अदो निक्लेवो" ॥ पाय "से केणट्रेण" त्यादि वायतु निगमन छे. “से वेणटेणं गोयमा एवं बुच्चइ" તે આ રીતે છે. ___ "सेव भंते ! सेव भंते ! ति जाव विहरई" है भगवन् मर्यापाथिली ક્રિયાના વિષયમાં આપી દેવાનું પ્રિયે જે પ્રમાણે કહ્યું છે. તે સર્વથા સત્ય જ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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