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________________ चन्द्रिका टीका २०१८ उ० ७ सू० ६ देवसामर्थ्यनिरूपणम् १४३ I देवे णं' देवः खलु भदन्त | 'महिडिए' महर्द्धिको महाद्युतिको महायज्ञा महावलो जहासौख्यः एवं घायखंडं दीवं जाव' एवम् लवणसमुद्रवदेव धातकीखंड द्वीप' सर्वतो वा शीघ्रमागन्तुं समर्थः किम्, यावत्पदेन 'अणुपरियहिता णं हन्त्रमागच्छित्तए' एतदन्तस्य पूर्ववाक्यावयवस्य संग्रहो भवतीति प्रश्नः भगवानाह - 'हंता' इत्यादि । 'हंता पभ्रू ' हन्त ! प्रभुः हे गौतम ! धातकीखण्डस्य चतुर्दिक्षु भ्रमणे ततः परावृत्यागमने चास्ति देवानां सामर्थ्यमित्युत्तरम् । ' एवं जान रुयगवर दीवं जाव' एवं यावत् रुवकवरंद्वीपं यावत् एवमेव धातकीखण्डवदेव यावत् रुचकदर' खण्डमिति पर्यन्तं महर्द्धिकादि विशेषणवतो देवस्य चतुर्दिक्षु भ्रमणे सामर्थ्यमस्ति ततः पराहृत्य आगमने च सामर्थ्यमवगन्तव्यमिति उत्तरपक्षाशय क्योंकि वह विशिष्टतर पुण्य के प्रभाव से अपूर्व सामार्थ्यशाली होती है । अब गौतम प्रभु से ऐसा पूछते हैं 'देवे णं भंते ! महड्डिए' हे भदन्त ! महर्द्धिक आदि विशेषणोंवाला देव ' एवं धाइयखंड ० लवणसमुद्र के जैसा ही घातकी खण्ड द्वीप की चारों दिशाओं में भ्रमण करके शीघ्र ही अपने स्थान पर आ सकता है ? यावत्पद से 'अणुपरियहिताणं हव्वमागच्छत्तए' इन पूर्वपाठ का संग्रह हुआ है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते हैं - 'हंता पभू' हां गौतम ! पूर्वोक्त विशेषणोंवाला देव धातकी खण्ड की चारों दिशाओं में भ्रमण करके अपने स्थानपर आने के लिये समर्थ है | क्योंकि देवों में ऐसी सामर्थ्य होती है । 'एवं जाब रूपगवरं दीवं जाव' घातकी खण्ड के जैसा रुचकरवर द्वीप तक वह महर्द्धिक आदि विशेषणों वाला देव उसकी चारोंदिशाओं घूमकर वापिस बहुत जल्दी अपने स्थान पर आ सकता है । 'तेणं परं बीइवयेज।' અપૂર્વ શક્તિવાળી હાય છે. ફરીથી ગૌતમ સ્વામી પ્રભુને એવુ પૂછે છે કે-"देवे णं भंते! महिड् ढिए” हे भगवन् भडद्धिः विगेरे विशेष वाणी द्वेव "एवं હૈ धायइ खंडं०" सवयुसमुद्रनी भाई घातडीमांड द्वीपनी यारे माजु श्रीने सहीथी चाताना स्थान पर भावी शडे हे ? मडियां यावत्पथी "अणुपरियट्टित्ता गं हव्वमा गच्छित्तए" मा पूर्व चाहना संग्रह थयो छे. या अश्रना उत्तरमां अलु उडे छे ! - “हंता पभू” डा गौतम! पूर्वोक्त विशेषवाजो देव धातठी ખંડની ચારે બાજુ ફરીને પેાતાને સ્થાને આવવા તે સમથ છે કેમ કે દેવામાં वु सामर्थ्य होय छे. "एवं जाव रुयगवरं दीव जाव" ते भद्धि देव ધાતકી ખ′ડ દ્વીપ પ્રમાણે રૂચકવર દ્વીપ સુધી તેની ચારે તરફ ફરીને ઘણુાજ सद्दी पोताना स्थाने भावी शडे छे. " तेर्ण परं वीइवएज्जा" ते पछी ते हेव
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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