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________________ भगवतीसूत्रे भापते मरूपयति दर्शयति प्रदर्शयतीत्यादीनां ग्रहणं भवतीति से अरिहंताणं आसायणाए चट्टई' स खल अहताम् आशातनायां वर्तते, तथा ' इंत-पन्नत्तस्स धम्मस्स आयायणाए बट्टइ' अत्मज्ञप्तस्य धर्मस्य आशातनाएं वर्तते यो जानन्नपि लोवेभ्यः प्रज्ञापयति प्रदर्शयति वा स भगवतो भगवत्पाद वस्य धर्मस्य च विराधनां करोति-इत्यर्थः तथा 'केवलीणं आसायणाए वह केवलिनाम् आशावनायां वर्तते' केवलिपन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणाए बहुइ' केवलिपज्ञप्तस्य धर्मस्य आशातनायां वर्तते 'त मुठ्ठणं तुम मदुया' तत् सुग्छु खलु वं मद्रुक ! 'ते अन्नउथिए एवं बयासी' तान् अन्ययधिकान् एवमवादीः यस्मात्कारणात् यो यं न जानाति न पश्यति तस्य वस्तुनो बहुजनमध्ये प्ररूपणे करता है यावत्-उस पर भाषण करता है, उसकी प्ररूपणा करता है, उसे दिखाता है। उसे प्रदर्शित करता है। 'लेणं अरिहंताणं आसायणाए वई' वह अर्हन्तों की आशातना में रहता है । नथा-'अरिहंत पन्नत्तस्स धम्मस्त आसायणाए वह अहन्तप्रणीत धर्म की आशातनो में रहता है तात्पर्य यह है कि जो पूर्वोक्त अर्थादिकों को नहीं जानता हुआ भी लोकों के लिये उनकी प्ररूपणा करता है। अथवा प्रदर्शन करता है वह भगवत्प्रतिपादित धर्म की चिराधना करता है । तथा क्षेवलीणं आसा. यणाए वट्टा' केवलियों की आशातना में रहता है अर्थात् उनकी आशातनां करता है। 'केवलिपन्नत्तस्त धस्मस्ल आरसायणाए दट्टई' तथा केवलिप्रज्ञप्त धर्म की आशातना करता है । 'ते सुखणं तु मदुया!ते अन्न उत्थिए एवं क्याली' तो हे मद्रुक ! तुमने अच्छा किया जो उन अन्ययूथिकों से ऐसा कहा कि जो जिलको नहीं जानता है, नहीं देखता પિત કરે છે, યાવત, તેને પ્રરૂપિત કરે છે અને તેને ભાષા દ્વારા વર્ણવે છે. 'से णं अरिहंताणं आसायणयाए वट्टइ" ते मनुष्य मत अगवाननी माशातना ४२वामा मन छे. तेम १ “अरिहंतपन्नत्तस्स धम्मस्स आसायणयाए वट्टई" અહંત ભગવતેએ ઉપદેશેલા ધર્મની આશાતના કરે છે. કહેવાનું તાત્પર્ય એ છે કે–જે પૂક્તિ અદિને ન જાણવા છતાં પણ તેની આગળ તેની પ્રરૂપણ કરે છે. અથવા તેને વર્ણવે છે તે વ્યક્તિ ભગવાનની અને ભગવત્કૃતિ पाहित धमनी माशातना 3रे थे. तथा--"केवलीणं आसायणाए वट्टइ" वही प्रज्ञात धमनी माशातना रे छ. "ते सुटूठ्ठयं तुम मद्दयाते अन्नउत्थिए एवं वयासी" as भट्ठ! तमामे उत्तम यु भन्ययूथिने से ४ह्यु. જે કઈ જે પદાર્થને કેાઈ જાણતા નથી. કે દેખતા નથી. તેની અનેક સમુ
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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