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________________ ૨૯ भगवती सूत्रे 'त्तिकद्दु' इति कृत्वा एवं रूपेणेत्यर्थः तेणं अन्नउत्थिए एवं पडिहणई' तान खड़ी अन्ययूथिकान् एवं यथोक्तप्रकारेण प्रतिहन्ति परामवति मदुकः 'एवं पडिणिसा एवं यथोक्तक्रमेण परान् प्रतिहत्य - पराभूय' जेणेव गुणसिलए चेइए' यत्रैव गुणशिलकं चैत्यम् | 'जेणेव समणे भगवं महावीरे' यत्रैव श्रमणो भगवान महा वीर: 'तेणेव उवागच्छइ' तत्रैव उपागच्छति' उवागच्छित्ता उपागत्य " समणं भगवं महावीरं श्रमण भगवन्तं महावीरम् 'पचविणं अभिग़मेण जाव पज्जुवासह' पञ्चविधेन-पञ्चप्रकारेण अभिगमेन यावत् पर्युपास्ते यावत्पदेन वन्दननमस्कारादीनां ग्रहणं भवतीति मदुयाइ समणे भगवं महावीरे' हे मदुक ! इति श्रमणो भगवान् महावीरः, हे मनुक ! इत्येवं रूपेण मदुकं संबोध्य श्रमणो भगवान् महावीर ः 'मदुयं समणोवासयं एवं वयासी' मदुकं श्रमणोपासकम् एवंऐसा कथन तो ठीक नहीं माना जा सकता । 'त्ति कट्टु तेणं अन्नउत्थिए एवं पsिहणइ' इस प्रकार के युक्ति पूर्ण कथन से मद्रुक श्रावकने उन अन्ययूथिकों को परास्त कर दिया। एवं पडिणित्ता जेणेव गुगसिलए चेहए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छद्द' और परास्त करके वह जहां गुणशिलक उद्यान था, और उसमें भी जहां श्रमण भगवान् महावीर थे वहां पर आया । 'उवागच्छित्ता' वहां आकर के उसने 'समण भगवं महावीरं' उसने श्रमण भगवान् महावीर को 'पंचविहेणं अभिगमेणं जाव पज्जुवासह' पाँच प्रकार के अभिगम से यावत् पर्युपासना की यहां यावत्पद से वन्दना नमस्कार आदि पदों का ग्रहण हुआ है । 'मदुयाई समणे भगवं महावीरे' हे मनुक ! इस प्रकार से सम्बोधित करके श्रमण भगवान् महावीरने 'मदूदुयं समणोवासयं एवं अर्ध रीते योग्य भानी शाय नहि. "तिकट्टु तेणं अन्नउत्थिए एवं पडिहणइ " આ રીતે યુક્તિ યુક્ત કથનથી મદ્રુક શ્રાવકે તે અન્યયૂથિકોને પરાજીત કર્યાં. " एवं पडिहणित्ता जेणेव गुणविलए चेइए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ” मा रीते ते अन्ययूथिहोने पराकत र्या पछी ते भगु श्राव यां भगवान् भहावीर स्वाभी मिराभान देता त्यां ते मान्यो “उवागच्छित्ता" त्यां भावीने तेथे "समणं भगवं महावीरं " श्रमाशु लगवान् महावीर स्वाभीने “पंच विद्देणं अभिगमेणं जाव पज्जुवाखइ" यांय अहारना अलिगभथी यावत्थयुपासना उरी यावत्पद्यथी वहन नमस्कार विगेरे यही थड थथा छे. “मदु थाइं समणे भगवं महावीरे" हे २६ मे प्रभा सभोधन पुरीने श्रमायु भगवान् महावीरे “मदुय' समणोवासय एवं क्यासी" ते २ श्रावने
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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