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________________ मैयचन्द्रिका टीका श०१८ ३०७ सु०३ मद्रुकश्रमणोपासकचरितनिरूपणम् १२५ वलोकवर्त्तमानपदार्थ जातानां प्रत्यक्षं भवति किमिति प्रश्नः, उत्तरयन्ति 'पो गडे समड़े' नायमर्थः समर्थः, परलोकगतपदार्थः, परलोकगत पदार्थजातानां प्रत्यक्ष न भवतीति । 'एवामेव आउसो' एवमेव आयुष्मन्तः ! 'अहं वा तुज्झे वा अन्नो वा छउमत्थो' अहं वा यूयं वा अन्यो वा छद्मरथः ' जइ जो जं न जाणइ न पासइ तं सव्र्व्वं न भवइ' यदि यो थं न जानाति न पश्यति तत्सर्वं न भवति किम् ? ' एवं मे 'सुबहुए लोए न भविस्सर' एव तदा सुबहुको लोको न भविष्यति यदि प्रत्यक्षनिवृत्तिमात्रात् निवृत्तिमात्रात् वस्तूनामभावो भवेत्तदा भवत्कथनानुसारेण पवनादि देवलोकस्थित बहुपदार्थानामभावः प्रसज्येत अतः यो यं पश्यति तस्य कृते तद्वस्तु प्रत्यक्ष न भवति न वाचता तादृशपदार्थजातस्याभावो भवतीति । पासह' हे आयुष्मन्तो ! तुम लोग क्या उन देवलोकगत पदार्थों के रूप को देखते हो ? उत्तर में उन लोगों ने कहा 'णो इणट्ठे समट्टे' हे मद्रुक ! यह अर्थ समर्थ नहीं है । अर्थात् हम लोगों को देवलोकगत पदार्थों का प्रत्यक्ष नहीं होता है | 'एवामेव आउसो ! अहं वा तुझे वा अन्नो वा छउमत्थो जह जो जं न जाय, तं सव्वं इसी प्रकार से हे आयुष्मन्तो ! मैं अथवा तुम सब या दूसरा कोई छद्मस्थ जो जिस पदार्थ को नहीं जानता है । या नहीं देखता है तो क्या वह नहीं है । ऐसा माना जाता है ? ' एवं से पहुए लोए न भविस्सइ' यदि ऐसी बात मानी जावे कि जो प्रत्यक्ष से प्रतीत नहीं होता है उस वस्तु का अभाव है तो आपके इस कथन के अनुसार पथनादिकों का देवलोक स्थित पदार्थों का अभाव मानना पडेगा- इसलिये जो जिसे नहीं दिखता है । उसके लिये वह वस्तु प्रत्यक्ष नहीं होती है एतावता तादृश पदार्थ जात का अभाव होता है उत्तर- "णो इणट्टे सगट्टे” डे ! म अथन मरोर नथी. अर्थात् આપણે દેવલેાકમાં રહેલા પદ્માર્થાના રૂપને પ્રત્યક્ષ જોઈ શકતા નથી. एवा मेव आउसा अहं वा तुज्झे वा अन्नो वा छउमत्थो जह जो ज न जाणइ न पासइ તું સ” હું આયુષ્મ`તા! હુ' અથવા તમે અગર ખીજે કોઈ છદ્મસ્થ જે પદ્માને જાણતા નથી અથવા દેખતે નથી. તેથી શું તે પદાર્થ છે ४ नहि तेम उही शाय छे ? “ एवं सुबहुए लोए न भविस्वइ' ले सेभन માની લેવામાં આવે કે પ્રત્યક્ષ રીતે જોઇ ન શકાય તે વસ્તુના અભાવ છે, તા એ કથનના આધારથી પવન વિગેરેના અને ડૅવલેકમાં રહેલા પદાર્થોના અભાવ જ માનવા પડશે.--તેથી જે વસ્તુ જેનાથી જોઈ શકાતી નથી તેને તે વસ્તુ પ્રત્યક્ષ ન હેાવાથી તેવા પદાર્થના અન્નાવ જ હાય છે એવુ કથન
SR No.009323
Book TitleBhagwati Sutra Part 13
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1969
Total Pages984
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size63 MB
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