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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ०४ सू०१ प्राणातिपातादिक्रियानिरूपणमू ४५७ अस्पृष्टा क्रियते या काचनक्रिया भवति सा सर्वापि आत्मप्रदेशसंबद्धैव भवति नो असंवद्धा भवतीति भावः 'एवं जहा पढमसए छट्ठद्देसए जाव णो गणाणुपुन्विकडा त्ति वत्तव्यं सिया' एवं यथा प्रथमशते पष्ठोदेशके यावत् नो अनानुपूर्वीकृता इति वक्तव्यं स्यात् प्रथमशतके षष्ठोद्देशकेऽपि 'जाव निवाघाएण' इत्यादि। पाठो लभ्यते तत्र 'जाव' इति यावत् , अन यावत्पदेन विवक्षितपाठः संग्राह्यः, तथाहि-'सा भते । कि श्रोगाढा कज्जइ अगोगाढा कज्जइ ? गोयमा ! ओगाढा कज्जइ नो अणोगाढा कज्जइ. एवं अणंतरोगाढा कज्जइ नो परंपरोगाढा कज्जइ । सा मंते ! अणु कजइ वापरं कन्जइ ? गोयमा ! अणु पि कज्जइ वायरंपि कज्जइ सा भंते ! कि उई कज्जइ तिरियं कज्जा, अहे कज्जइ गोयया । उडुपि कज्जइ तिरियषि कज्जइ बहे वि सजगइ । सा भंते ! कि आई कज्जइ मज्झे कज्जइ अंते कज्जा ? गोयमा ! आइंषि कज्जइ मज्झे वि कज्जइ अंते वि कन्जइ । सा भंते ! किं सविसए कज्जइ अविसए कज्जइ ? गोयमा ! सचिसए कज्जइ नो अविसए कज्जइ निवाधाएणं छदिति, आघायं पहुच्च सिय तिदिसि सिय चउदिसिं सिय पंचदिसि । सा मंते ! किं कडा कज्जइ अकडा कज्जइ ? गोयमा कडा कज्जइ नो अकडा कस्जद । सा भ! किं अत्तकडा कज्जइ परकडा कज्जइ ? गोयमा ! अत्तकडा कज्जइ णो परकडा कज्जइ नो तदुभयकडा कज्जइ । सा भंते ! किं आणुपुनिकडा कन्नइ अणाणुपुचिकडा कज्जइ ? गोयमा ! आणुपुब्धिकडाकज्जइ नो अगाणुपुचिकडा कज्जइ जायकडा, जाय कज्नइ, जाय कज्जिस्सइ सन्ना सा आणुपुन्धिकडा कज्जइ नो अणाणुपुचिकडा ति बत्तव्वं सिया' इत्यन्तः सन्दोऽन अनुसन्धेयः । अस्य व्याख्या मथमशतकस्य षष्ठोद्देशके द्विनीयसूत्रस्थ मत्कृतायां प्रमेयचन्द्रिकाटीकायां द्रष्टव्यम् । एवंजाब वेमाणियाण' हे गौतम ! वह स्पृष्ट हुई की जाती है अस्पृष्ट हुई नहीं की जाती है। 'एवं जहा पढमलए छठुद्देसए जाव अणाणुपुचिकडा त्ति वत्त लिया' इत्यादि सब कथन जैसा कि प्रथल शतक के छठे उद्देशे में कहा गया है वैसा ही यहां पर कह लेना चाहिये, यावत् वह क्रिया अनुक्रमसे होती है। अनुक्रम के विना नहीं होती है। एवं जाव वेमा. कज्जइ" गौतम ! या २८ थाने ४२राय छ. २Yष्ट थाने ४२पामा माती नथी "एव जहा पढमसए छठुद्देसए जाव णो अणाणुपुविकतात्ति वत्तव्य सिया" विगेरे सघणु ४थन पडेटा शतना ७८४८ देशाभावीरीत કહેવામાં આવ્યું છે તેવી જ રીતે અહિયાં પણ સમજવું. યાવત્ તે ક્રિયા मनुभथी थाय छे. अनुभ विना थती नथी. "एवं जाव वेमाणियाणं" भ०५८
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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