SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 422
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०४ भगवती सूत्रे 6 संज्ञाभयसंज्ञा - मैथुनसंज्ञा परिग्रहसंज्ञासु एव ओरालियरीरे ५', एवम् औदारिकशरीरे ५ औदारिकनैक्रियाहारक- तेजसकामंग - शरीरेषु इत्यर्थः ' एवं ' मणोजोगे ३' एवं मनोयोगे ३ मनोयोगवचोयोगकाययोगेषु इत्यर्थः ' सागारोवओगे अगागारोवओगे ' साकारोपयोगे अनाकारोपयोगे च 'वट्टमाणस्स' वर्तमानस्य देहिनः 'अन्ने जीवे अन्ने जीवावा' अन्यो जीवो देह इत्यर्थः अन्यो जीवात्मा ' से कहमेयं भंते । एवं' तत् कथमेतत् भदन्त ! एवम् ? परैरुच्यमानं शरीरजीवात्मनोः सर्वथा पार्थक्यं तत् किं सत्यम् ? एतदन्तः परयूथिकमताभि प्रायकः प्रश्नः । भगवानाह - 'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा ।' हे गौतम । 'जं अन्न उत्थिया एवमाक्वति' यत् खलु ते अन्ययूथिका एवं पूर्वोक्तप्रकारेण जीवपदवाच्यशरीर - जीवात्मनोः सर्वथैव पार्थक्यम् आरूपांति 'जाव' यावत् भापन्ते प्रज्ञापयन्ति प्ररूपयन्ति तत् 'मिच्छं ते एवमाइक खंति० ४' मिथ्या ते भसंज्ञा में, परिग्रहसंज्ञा में, और मैथुन संज्ञा में, ' एवं ओरालियस - रीरे ५' औदारिक शरीर में, वैक्रियशरीर में, आहारकशरीर में तैजसशरीर में, और कार्मणशरीर में, 'एवं मणोजोगे ३' मनोयोग में, वचन योग में, एवं काययोग में 'सागारोवओगे अणानारोवओगे' साकारोपयोग में, और अनाकारोपयोग में 'वट्टमाणस्स अन्ने जीवे अन्ने जीवाया' वर्तमान देही का शरीर अन्य है और जीवात्मा अन्य है । ' से कहमेयं भंते! एवं' सो हे भदन्त ! ऐसी जो शरीर और जीवात्मा की भिन्नना-विष an अन्तर्थकों की मान्यता है वह ऐसी ही है अर्थात् सत्य है ? इस प्रश्न के उत्तर में महावीर प्रभु कहते हैं - ' गोयमा । जं णं अन्न उत्थिया एवमाक्खति जाव भासंति, मिच्छं ते एवमाइक्वंति' 'हे गौतम ! जो वे अन्ययूधिक जीव पदवाच्य शरीर में एवं जीवात्मा में थड सज्ञामां, मने मैथुन सज्ञाभां "एवं ओरालि यसरीरे (५)” औौहारि४ शरीरमां, वैडिय शरीरमां भने अशु शरीरमां "एवं मणोजोगे ( ६ ) ” भनेयोगभां वयनयोगभां भने अययोगभां "सागारोवओगे, अणोगरोवओगे” साारोपयोगयां मने मना अरोपयोगभां “वट्टमाणस्स, अन्ने जीवे अन्ने जीवाया" वर्तमान हेहीतुं शरीर अन्य के भने वात्मा अन्य हे. "से कइमेयं भंते एवं " डे लगवन् ! शरीर भने भवात्मानी भिन्नता विषे અન્ય મતવાદિઓની આવી જે માન્યતા છે. તે શુ' સત્ય છે ? આ પ્રશ્નના उत्तरभां भहावीर अलु उडे छे ! "गोयमा ! जं णं अन्नउत्थिया एवमाइकति जाव भासंति मिच्छं ते एवमाइक्खंति ( ४ ) " हे गौतम अन्य भतवाहि
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy