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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१७ उ०१ सू०२ जीवानां वालण्डितत्यादिनिरूपणम् ३८७ अत्र यावत्पदेन 'मासंति पन्नवेति' अनयोः संग्रहः । किमाख्यान्ति अन्ययूथिकास्तत्राह - ' एवं खर्च' इत्यादि । 'एव खलु समणा पंडिया समणोवासया वाल पंडिया' एवं खलु श्रमगाः - सर्व विरतिमन्तः, पण्डिता व्यपदिश्यन्ते श्रमणोपासकाः - श्रावकाः वाळपण्डिताः कथ्यन्ते तेषां मध्ये । 'जस्सणं एगपाणाए त्रि दंडे अणिक्खत्ते से णं गतवाले चि वत्तन्न सिय' यस्य कस्यचित् खलु एक टीकार्थ - - इस सूत्र द्वारा गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है- 'अन्नडथियाणं भंते! 'हे भदन्त ! जो अन्यतीर्थिक हैं वे 'एवमाइक्खति' ऐसा कहते हैं । 'जाब परमि' यावत् प्ररूपित करते हैं - यहां यावत् शब्द से 'भासंति, पन्नवेति' इन दो क्रियापदों का ग्रहण किया गया है। ऐसा वे क्या कहते हैं- सो इसे प्रकट करते हुए सूत्रकार कहते हैं- ' एवं खलु समणा पंडिया, समणोवासया बालपंडिया' कि जो श्रमण हैं वे पण्डित हैं, तथा जो श्रमणों के उपासक हैं वे बालपण्डित है, इन के बीच में 'जस्सणं एगपाणाए वि दंडे अणिविखन्ते से णं एगंतबालेप्ति वस्त्तव्यं. 'सिया' जिसके एक भी प्राणि के विषय में दण्ड अप्रत्याख्यात है वह एकान्त घाल हैं ऐसा कहा जा सकता है ऐसा वे कहते हैं ताप इसका ऐसा है कि जो सर्व विरति संपन्न श्रमणजन हैं वे पण्डित है, तथा जो इन श्रमणजनों के उपासक हैं- श्राचक हैं - वे बालपण्डित हैं । परन्तु वह जीव इनके बीच में बालपण्डित नहीं है कि जिसने केवल एक टी अर्थ -- 'अन्नउत्थिया णं भते ! हे भगवन् को समन्य तीर्थ छे तेथे 'एवमाइक्खंति' मा प्रभाणे ४डे छे. 'जाव परूवें 'ति यावत् प्र३पित रे छे, अडि° यावत् शब्दथी ‘भासंति' 'पन्नवे 'ति' मा मे प्रियायहो श्रषु थया छे. तेथे। शु उडे छे मे मतावतां सूत्रार आहे हे हैं - ' एवं खलु भ्रमणा पंडिया, . समणोवासया बालपंडिया' तेथे हे छे है ? श्रम छे तेच्या पंडित छे. तथा भेथेो श्रमशोना उपास छे तेथे। मासपंडित छे. तेगोभां 'जस्स एग पाणाए वि दंडे अणिक्खित्ते से णं एता त्ति वत्तव्वं सिया' ने मे४ प्राचिना પ્રાણેાના વિષયમાં દંડ અપ્રત્યાખ્યાત કર્યાં છે એટલે એકપણ પ્રાણિના વધતું પ્રત્યાખ્યાન જેણે કર્યુ છે તે એકાન્ત માસ છે તે પ્રમાણે તેઓ કહે છે. આ કથનનુ તાત્પય એવુ છે કે—જે સ*નિતિવાળા શ્રમણુજના છે. તે પ'ડિત છે, તથા જેઓ આ શ્રમણેાના ઉપાસક છે તે શ્રાવક છે અર્થાત્ ખાલપતિ છે. પરંતુ જેણે કેવળ એકપણુ જીવના વધને ત્યાગ કર્યું નથી તે
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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