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________________ ३८८ भगवतीसरे प्राणेऽपि दण्डोऽनिक्षिप्तः स खलु एकान्तवाल इति वक्तव्यं स्यात् अनिक्षिप्त:अमत्याख्यातो भवति स एकान्तवाल इति वक्तव्यं स्यात् । 'से कहमेयं भंते ! एवं तत् कथमेतद् भदन्त ! एवम् ? भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'जणं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्खंति' यत् खलु ते अन्ययूयिका एवमाख्यान्ति 'जाव वत्त सिया' यावत् बलव्यं स्पात 'जे ते एवं आहंसु मिच्छं ते एवं आहेसु' ये ते एयमाहुः मिथ्या ते एबमाहुः । यदि ते अन्य यधिशा मिथ्या वदन्ति तदा तद्विषये सत्यं किमिति शङ्कया माह-'अहं पुण' इत्यादि । 'अहं पूग गोयमा' अहं पुनगौतम ! मन 'पुन' रित्यव्ययः तु शब्दार्थवोधका तेन-अहं तु 'एकमाइक्खामि' एवमाख्यामि 'जात्र परूवेमि' यावत् भरू जीव के विराधना का त्याग नहीं है-परन्तु और सब जीव के विराधना का त्याग है ऐसाजीव तो एकान्ततः बाल ही है। सो इस विषय में 'से कहमेयं भंते! एवं ' गौतमने प्रभु से उनका ऐसा कहना क्या सत्य है ? ऐसा पूछा है । उत्तर में प्रभु ने कहा 'गोयमा' हे गौतम ! 'जण्णं ते अन्नउत्थिया एवं आइक्खंति जाव वत्तव्यं लियो' जो उन अन्यतीर्थिकों ने यावत् जिस जीव ने केवल एक जीव की हिंसा करने का त्याग नहीं किया है, वह एकान्त घाल है' यहां तक जो कहा है। 'जे ते एवं आहंसु मिच्छते एवं आहेतु' सो ऐसा उनका कहना मिथ्या है-उन्होंने यह असत्य कहा है। तो हे भदन्त इस विषय में सत्य क्या है ? इसका उत्तर देने के लिये प्रभु कहते हैं-'अहं पुण गोयमा! एवमाइबखामि, जाव परूवें मि' मैं तो इस विषय में ऐसा कहता हूं-यावत् प्ररूपित બાલપંડિત નથી. પણ બીજા અજીવના વધને ત્યાગ કર્યો હોય એ જીવતે सन्तत: माल छे. मा विषयमा से कहमेयं भंते ! एवं गौतम स्वामी को પ્રભુને પૂછયું કે હે ભગવન તેઓનું આમ કહેવું શું સાચું છે? તેના ઉત્તરમાં प्रभु ४४ छ ?-गोयमा ! 3 गौतम ! 'जण्णं ते अन्न उत्थिया एव' आइक्खंति जाव वत्तव्वं सिया' ते मन्य तीथि २ वे यावत् छत से પણ જીવની હિંસા કરવાને ત્યાગ કર્યો નથી. તે એકાન્તબાલ छ.' मडि सुधानु २ ४थन यु छ त “जे तं एवं आइंसु मिच्छं ते एवं आहेसु" तेमानुते प्रमाणेनुं ते मिथ्या छे. अर्थात माथे તે અસત્ય કહ્યું છે. તે હે ભગવાન આ વિષયમાં સાચું શું છે? मा प्रश्न उत्तर भापता प्रभु ४ छ -“अहं पुण गोयमा! एवमाइक्खामि जाव परूवेमि" तो मा विषयमा मेम. ४ छु. यावत प्र३पित -
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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