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________________ अमेयचन्द्रिका टीका श० १७ उ० १ १०३ शरीरेन्द्रिययोगानां क्रियानि० ३६७ शरीरं निर्वतमानाः कतिक्रिया:-कियतीभिः क्रियाभिः स्पृष्टा भवन्ति जीवा इति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा !' हे गौतम ! 'तिकिरिया वि' त्रिक्रिया अपि कदाचित् क्रियात्रयेण स्पृष्टा अपि भवन्ति यदा खलु औदा. रिकशरीरं निवर्तमानाः परेषां जीवानां परिवापादिकं न कुर्वन्ति तदा कायिकी आधिकरिणिकी पाद्वेषिकीति क्रियात्रयेणैव संस्पृष्टा भवन्तस्त्रिक्रियावन्तो भवन्तीति भावः । 'चउकिरिया वि' चतुष्क्रिया अपि परपरितापने पारितापिनिकी सहिताश्चतस्रः क्रिया भवन्ति 'पंचकिरिया वि' पञ्चक्रिया अपि प्राणातिपाते कृते सति प्राणातिपातसहिताः पञ्चक्रिया अपि भवन्ति औदारिकशरीरनिर्वनिकाले जीवानाम् एकजीवदण्ड के 'सिय तिकिरिए' इत्याधुक्तम् अत्र सिय भते! ओरालियसरीरं निव्वत्तेमाणा कहकिरिया' हे भदन्त ! अनेक जीव जब औदारिक शरीर का बन्ध करते हैं-तब वे कितनी क्रियाओं से स्पृष्ट होते हैं ? इस के उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा!' हे गौतम ! तिकिरिया विवेकदाचित् तीन क्रियाओं से भी युक्त होते हैं। औदारिक शरीर का निर्वर्तन करते हुए जो जीव दूसरे जीवों को परितापादिक नहीं करते हैं, वे कायिकी आधिकरणिकी और प्रादेषिकी इन तीन क्रियाओं से ही युक्त कहे जाते हैं। 'चउक्किरिया वि' और जो वे दूसरों को परिताप करते हैं, वे पारितापनिकी क्रिया सहित चार क्रियावाले होते हैं। 'पंचकिरियो चि' और जो माणातिपात क्रिया करते हैं, वे प्राणातिपात क्रिया सहित पांच क्रियाओंवाले होते हैं। ऐसा जानना चाहिये औदारिक शरीर के निर्वर्तन काल में जीवों के एक जीव दण्डक में 'सिय तिकिरिए' इत्यादिरूप से कहा गया है । परन्तु छ. “जीवा गं भंते ! ओरालियसरीरं निवत्तेमाणा का किरिया' हे सगवन! છે જ્યારે ઔદારિક શરીરને બંધ કરે છે, ત્યારે તેઓ કેટલી ક્રિયાઓ पाया थाय छ १ तना उत्तरमा प्रभु छ "गोयमा" है गौतम "ति किरिया वि" तमा न्यारे मोहारी शरीरमा म रे छ त्यारे भीत જીને પરિતાપ વિગેરે કરતા ન હૈ વાથી તેઓ કાયિકિ, આધિકરણિકી मने प्रारशिली से लिया। वाणा १ थाय छ "चउ किरिया "वि" અને જ્યારે તેઓ બીજાને પરિતાપ પહોંચાડે છે. ત્યારે તેઓ પરિતાપનિકી या सहितनी या२ यायपास डाय छे. पच किरिया वि' भने ल्यारे તેઓ પ્રાણાતિપાત ક્રિયા કરે છે. ત્યારે પ્રાણાતિપાતિકી ક્રિયા સાથેની પાંચ ક્રિયા વાળા થાય છે. તેમ સમજવું. ઔદારિક શરીરના સંબંધ કાળમાં लवाना ४ ७१ ३४मा "सिय तिकिरिए" इत्यादि ३५था वामां आव्यु
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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