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________________ भगवतीचे असणाए छे देइ' पष्टि भक्तानि अनशनेन छिन्नत्ति 'छेदित्ता' पष्टि भक्तानि अनशनेन छित्वा 'आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते' आलोचितपतिक्रान्तः तत्र आलोचनं-स्वदोपाणां गुरवे निवेदनम् प्रतिक्रमणं स्वकीयदोपपरिहागय मायश्चित्तानुष्ठानम् , समाधिमाप्तः समाधिसम्पन्नः, नैव चञ्चलचित्तः, एतादृशः सन् 'कालमासे कालं किच्चा' कालमासे मरणावसरे कालं कृत्वा 'महागुर के कप्पे' सप्तमे महाशुक्रे कल्पे 'महासमाणे विमाणे' बहासमाननामके विमाने 'उवायसभाए' उपपानसभायाम् 'देवसयणिज्जसि' देवशयनीये देवशय्यायाम् 'गंगदत्त देवताए उपचन्ने' गङ्गदत्तनामकदेवतया उपपन्नः । 'तरण से गंगदत्ते देवे' ततः खल स गङ्गदत्तो देवः 'अहुणोववन्नगेत्तए समाणे' अधुनोपपन्नमात्रः सन्-तत्कालोपउसने 'सभित्ताई असणाए छेदेह' ६० भक्तों का अनशन द्वारा छेदन कर दिया । 'छेदित्ता' ६० भक्तों का छेदन करके वह 'आलोहयपडिकंते समाहिपत्ते' आलोचितप्रतिक्रान्त हुआ समाधि को प्राप्त हो गया अपने दोपों को गुरु से कहना इसका नाम आलोचन है। तथा अपने दोषों के परिहार के लिये प्रायश्चित्त लेना इसका नाम प्रतिक्रमण है। चश्चलचित्त का नहीं होना इसका नाम समाधि है। इस प्रकार की परिस्थिति से संपन्न हुए वे गंगदत्त अनगार 'कालमासे कालं किच्चा' कालपास में हाल करके 'महासुस्के कप्पे' महाशुक्रकल्प में 'महासमाणे विमाणे महासमाणनामके विमान में 'उवायसभाए' उपपात सभामें 'देवसयणिज्जेसि' देवशय्या पर 'गंगदत्तदेवत्तीए उववन्ने' गंगदत्त इस नामके देवरूप से उत्पन हुए। 'तए णं से गंगदत्त देवेअहुसंलेहणाए" यावत् मे भासनी समना द्वारा “सद्धि भत्ताई अणसणाए छेदेई" अनशन द्वारा १० महतार्नु छैन : "छेदिता "१० मतानुन शन " आलोइयपडिक्कते समाहिपत्ते " मालायित प्रतिrid तेरी સમાધી પ્રાપ્ત કરી પિતાના દોષે ગુરૂને કહેવા તેનું નામ આલેચન છે. અને એ દેના નિવારણ માટે પ્રાયશ્ચિત્ત લેવું તેનું નામ પ્રતિકમણ છે ચંચલ ચિત્તવાળા ન થવું તેનું નામ સમાધિ છે. આ પ્રકારની પરિસ્થિતિવાળે થઈને ते महत्त अनार "कालमासे कालं किच्चा" १७ भासमा शन " महामुक्के कप्पे " भाशु ४६५म " महासमाणे विमाणे" महासमान नामना विमानमा “ उबवायसभाए" ५पात समामा "देवसयणिज्जसि" देवशय्या ५२ “गंगदत्तदेवत्ताए उववण्णे " महत्तस नामना १३५था उत्पन्न ये. “ तए से गंगदेत्ते देवे अहुणोववन्नमेत्तए समाणे" destm
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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