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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०५ सू०४ गङ्गदत्तदेवस्य पूर्वभवविषयकप्र० १८५ पन्नः सन् ‘पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्ति मात्र गच्छई' पञ्चविधया पर्याप्त्या पर्याप्तिभावं गच्छति, पश्चविधया पर्याप्त्या पर्याप्तिभावमुपगत इत्यर्थः । 'तं जहा' तद्यथा 'आहारपज्जत्तीए नाव भासामणपज्जत्तीए' आहारपर्याप्त्या यावद् भाषामनःपर्याप्त्या अत्र यावत् पदेन शरीरेन्द्रियश्वासोच्छ्वास पर्याप्तीनी संग्रहः 'एवं खलु गोयमा ।' एवं खलु गौतम ! 'गंगदत्तेणं देवेणं सा दिया देविड़ी जाव अभिसमन्नागया' गङ्गादत्तदेवेन सा दिव्या देवर्द्धिर्यावदभिसमन्वागता, अत्र यावत्पदेन 'दिना देवजुई लद्धा पत्ता' इत्यस्य ग्रहणं भवति, हे गौतम ! अनेन प्रकारेण गङ्गदत्तदेवेन देवद्धि प्राप्त्य र्थः । 'गंगदत्तस्स गं भंते ! देवस्स' णोचवन्नमेसए समाणे' तत्काल उत्पन्न हुए वे गंगदत्तदेव 'पंच विहाए पज्जत्तीए पांच प्रकार की पर्याप्तियों से 'पज्जत्तिभावं गच्छइ' पर्याप्तिभाव को प्राप्त हो गये । 'तं जहा-आहारपज्जत्तीए जाव भासामणपज्जत्तीए' वे पांच प्रकार की पर्यासियां इस प्रकार से हैं-आहार पर्याप्ति भाषामन:पर्याप्ति यहां यावत् शब्द से 'शरीर इन्द्रिय और श्वासोच्छ्वास' इन पर्याप्तियों का ग्रहण हुआ है । 'एवं खलु गोयमा ! गंगदत्तण देवेणं सा दिव्या देबिडी जाव अभिसमभागया' इस प्रकार से हे गौतम ! गंगदत्तदेवने वह दिव्य देवद्धि यावत् अर्थात् अभिसमन्वागत की है। यहां यावत्पद से 'दिव्वा देवज्जुई लद्धा पत्ता' इन पदों का ग्रहण हुआ है। अब गौतम प्रभु से इस प्रकार से पूछते हैं-'गंगदत्तस्स णं भंते देवस्स' हे भदन्त ! गंगदत्त देवकी देवलोक में 'केवइयं कालं ठिई उत्पन्न येत हत्त व पंचविहाए पज्जत्तीए " पाय प्रा२नी प्रयासिया "पज्जत्तिभावं गच्छद" पयाति मापने प्राप्त ये "तंजहा-आहारपज्जतीए जाव भाखामणपज्जत्तीए" ते यांय ४२नी पलिया ! प्रमाणे छे. (१) माहा२पर्याप्ति (२) शरीररित (3) Uन्द्रियपास्ति (४) श्वासो ઝવણ પર્યાપ્તિ અને (૫) ભાષામન:પર્યાપ્તિ અહિયાં શરીર ઈન્દ્રીય અને श्वासोश्वासपात्तनु यावत् शपथी य ४२वामा माव्यु छे. "एवं खलु गोयमा ! गंगदत्तेणं देवेणं दिव्या देविट्ठी जाव अभिसमन्नागया” मेरीत હે ગૌતમ? તે ગંગદત્ત દેવે તે દિવ્ય દેવઋદ્ધિ અભિસમન્વાગત (પ્રાપ્તभगवी) ४१ छ मडिया यावत् पहथा “दिव्वा देवज्जुई लद्धा पत्ता" हिव्य દેવ યૂતિ લબ્ધ કરી છે, અને પ્રાપ્ત કરે છે એ પદોનું ગ્રહણ થયું છે. वे गौतम स्वामी प्रसुन मे प्रमाणे पूछे छ है “गंगदत्तस्स णं भंते ! देवस्स" सगवन् ! जगहत हेवनी वाम " केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता" भ० २४
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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