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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१६ उ०५ सू०४ गङ्गदत्तदेवस्य पूर्वभवविषयकप्र० १८३ मुश्चति 'ओमुइत्ता' अवमुच्य यथा उदायनो राजा स्वयमेव आभरणादिकं परित्यज्य पञ्चमुष्टिलोचं कृतवान् तथैव गङ्गदत्तोऽपि धर्म संजातश्रद्धः सन् सर्वमेव कृतवानित्यर्थः, अत्र उदायनराज्ञः सर्वोऽपि वृत्तान्तो ज्ञातव्यः 'सयमेव पंचमुठियं लोयं करेई' स्वयमेव पञ्चमुष्टिकं लोचं करोति 'करित्ता' कृत्वा 'जेणेव मुणिसुन्धए अरहा' यत्रैव मुनिसुव्रतोऽहंन् ‘एवं जहेब उदायणे तहेव पन्नइए' एवं यथैव उदा यनो राजा तथैव मुनिसुव्रतसमीपे गन्वा प्रत्रजितः-उदायनस्य राज्ञः प्रव्रज्या धारणवत् गङ्गादत्तस्यापि सदोरकमुखव स्त्रिकादि धारणपूर्वकं प्रव्रज्याग्रहणं ज्ञातव्यम् तहेव एक्कारसगाई अहिज्जइ' तथैव उदायनराजवदेव एकादशाङ्गानि अधीते यथा प्रव्रज्यामादाय उदायनेन राज्ञा एकादशाङ्गानि अधीतानि तथैव अत्रापि इति वोध्यम् 'जाच मासियाए संलेहणाए' यावद् मासिक्या संलेखनया 'सर्टि भत्ताई अपने आप आभरणों को उतार दिया। 'ओमुइत्ता' आभरणों को उतार कर फिर उसने उदायन राजा के समान धर्म में श्रद्धा संपन्न होने के कारण 'सयमेव पंचमुष्टियं लोयं करेइ' अपने हाथों से ही पंचमुष्टिक केशलुश्चन किया यहां पर उदायन राजा का वृत्तान्त कह लेना चाहिये । 'करिता' पंचमुष्टिक केशलंचन करके फिर वह 'जेणेव मुनिसुव्वए अरहा-एवं जहेव उदायणे तहेव पव्वहए' जहां मुनिसुव्रत अर्हन्त थे वहां पहुंच कर उसने 'एवं जहेव उदायणे तहेव पन्वइए' के अनुसार उदायन नरेश के जैसा ही मुनि सुव्रत अर्हन्त के समीप दीक्षा धारण करली। इस दीक्षा में उसने सदोरकमुखवस्त्रिका आदि जो साधु का वेष है उसे धारण किया। 'तहेव एगारसअंगाई अहिज्जा' उदायन नरेश के समान ही उसने ११ अंगो का अध्ययन किया 'जाव मासियाए संलेहणाए' यावत् मासिकी संलेखना द्वारा पातानी भनेर भाषण! SIN. " भोमुइत्ता" भाषण ताशन पछी ते " सयमेव पंचमुट्टियं लोयं करेइ" पाताना यथा यमुष्टि हैशदुयन यु माडिया हायन रानु सपू यरित्र सभा “करिता" शयन ४शन पछी ते “जेणेव मुणिसुव्वए अरहा एवं जहेव उदायणे तहेव पव्वइए"2वी श यन रानमे दीक्षा धारण रीती मेवी રીતે ગંગદર ગથાપતિએ મુનિ સુવ્રત અહંતની સમીપે દીક્ષા ધારણ કરી આ દીક્ષામાં તેણે સદેરક મુખવસ્ત્રિકા એટલે કે દેરા સાથેની મુહપત્તિ વિગેરે साधुन। २ ५४२६५ छ तर पा२५ ४. “बहेव एगारसअंगाई अहिज्जइ " हायन रानी मा त ११ मा अध्ययन यु. “जाव मासियाए
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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