SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 186
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १७० भगवती विपाकचन्द्रिकाटीकायां सुबाहुकुमाराध्ययनेऽवलोकनीयः। 'गंगदत्ते णं देवेणं' गादत्तेन देवेन 'सा दिव्या देवड्डो जाव अभिसमानागया' सा दिव्या देवद्धिविद् लब्धा, प्राप्ता अमिममन्वागता अभि-आभिमुख्पेन सम् मागत्येन अनुपश्चाद् आगता भोग्यतामुपगतेति, भगवानाह-'गोयमाह समणे भगवं महावीरे' गौतय इति श्रमणो भगवान् महावीरः 'भगवं गोयम एवं बयासी' भगवन्त गौतमम् एवमवादीद , हे गौतम ! एवं रूपेण संबोध्य गौतम प्रति आवादीदित्यर्थः 'एवं खलु गोपमा ।' एवं खलु गौतम ! 'तेणं कालेग तेणं समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'इहेव जंबुद्दीचे दीये' इहैव अस्मिन्नेव जम्बूद्वीपे मध्यजम्बूद्वोपनामके द्वीपे 'भारहे वासे' भारते वर्षे 'हत्यिणापुरे नयरे होल्या' हस्तिनापुरनामकं नगरमासीत् 'चन्नओ' वर्ण , चम्पापुरीवर्णनवत् हस्तिनापुरनगरस्यापि औपपातिकसूत्रोक्तं वर्णनं कर्तव्यम् 'सहस्संबवणे उज्जाणे' सहस्साम्रवनमुपधानमा. टीका में सुबाहुकुमार के अध्ययन में देखना चाहिये । तथा कैसे उसने अभिसमन्वागत की है-अर्थात् अपने भोग के योग्य पनाया है ? इस गौतम के प्रश्न के उत्तर में प्रभु कहते हैं'गोयमा समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं नयाती' हे गौतम ! सुनो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर इस प्रकार से है- 'एवं खल गोयमा! तेणं कालेणं तेणं समएणं' हे गौतम उस काल और उस समय में 'इहेच जंबुद्दीवे' दीवे' इस जम्बूद्वीप में-मध्य जंबूद्वीप नाम के द्वीप में 'भारहे वासे' भरत क्षेत्र में हथिणापुरे नयरे होत्या' हस्तिनापुरनगर था 'वन्नओ' वर्णक यहां औपपात्तिके सूत्र में जैसा चंपापुरी का वर्णन किया गया है-वैसा ही वर्णन इस हस्तिनापुरनगर का जानना રણનું વિશેષ વર્ણન “વિપાક સૂત્રની વિપાકચન્દ્રિકા ટીકામાં સુબાહ કુમારના અધ્યયનમાં આપવામાં આવ્યું છે. જીજ્ઞાસુએ તેમાં જોઈ લેવું તથા કેવી રીતે અભિસમન્વાગત કરી છે. અર્થાત્ પિતાને ભોગવવા ચોગ્ય બનાવી છે. गौतमना प्रश्न उत्तरमा प्रभु ४ छ “गोयमाइ समणे भगव' महावीरे भगवं गोयम' एव' वयासी" , गौतम तभा प्रश्न उत्तर या प्रभारी छ. “एवं खलु गोयमा तेण कालेणं वेणं समएण" गौतम am भने त समये " इहेव जंबुद्दीवे दीवे" मा मुद्वीपमा अर्थात् मध्य मुद्धापनामना द्वीपमा " भारदे वासे" भरतम " हत्थिणापुरे नयरे होत्था "स्तिनापुर नगर तु. “ वरुणओ" तेनु वन भोपाति सूत्रभावी शत पापुरीतुं वर्षन ४२पामा मा०यु छे. तेवी शत महिया सम . " सहस्संबवणे
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy