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________________ प्रमैयचन्द्रिका टीका श० १६ उ० ३ सू० १ क्रियाविशेषनिरूपणम् ९९ अनगारं कायोत्सर्गे वस्थितं लम्बमानासम् कश्चित् वैधोऽद्राक्षीत् , तं च दृष्ट्वा तादृशनासिकागतरोगकर्तनाय 'ईसि पाडेई' ईपत् स्तोकं पातयति भूमौ स्त्रा पयति, अपावितस्य नासिकास्थितरोगकर्तनासंभवात 'ईसि पाडेता असियाओ छिदेजा' ईपन पातयित्वा अंशिकाः छिन्द्यात् 'से णूणं भंते तद् नूनं भदन्त 'जे छिंदइ तस्स किरिया कज्जई' या नासिकारोंग छिन्नत्ति कर्तयति तस्य छेदकस्य वैधस्य क्रिया भवनि किम् ? क्रिया व्यापाररूपा, सा तु शुभा धर्मबुद्धया, लोमादि वुद्धया तु अशुभा क्रिया भाति, 'जस्स छिज्जइ नो तस्स किरिया कज्जई' यस्य मुनेरर्शिका छिचते नो तस्य क्रिया भवति यस्यानगारस्य अंशिका छेदोऽभूद (मसा) लटक आते हैं-बाहर निकल आते हैं-'तं च वेज्जे अदक्खु' कायोत्सर्ग में स्थित, एवं जिसके अर्श (मसा) बार निकल कर आये हैं ऐसे उस अनगार को यदि कोई वैध देखलेता है तो वह उन वैद्य उन अों को काटने के निमित्त 'ईसिं पाडेह' उस अनगार को जमीन पर लिटा देता है, क्योंकि जब तक उसे जमीन पर लेटाया नहीं जावेगातपतक उसकी नासिका में स्थित.उस अर्श रोग का काटना बन नहीं सकता है 'ईसिं पाडेता आसियाओं छिदेज्जा' लिटाकर अब वह उसके अंशिकाओं को काटता है । 'से णं तं भंते !' तो हे भदन्त । जे छिदंह, तस्स किरिया कज्जई' जिस वैद्यने उन अंशिकाओं को काटा हैं उस वैद्य को क्रिया लगती है ? व्यापाररूप क्रिया लगती है ? व्यापाररूप क्रिया धर्मवुद्धि से शुभ होती है, एवं लोभादिवुद्धि से अशुभ होनी 'जस्स छिज्जइ नो तस्स किरिया कज्जह ननस्थगेणं धम्मतराइएणं' વાળા તે સાધુના નાકમાં રહેલ અશ (મસા) લટકે છે. અર્થાત બહાર નીકળે छ. "तंच वेज्जे अदक्खु" योत्सर्गमा २७अने मश (भा) २१ બહાર નીકળેલા છે. એવા તે અનગારને જે વૈદ્ય જુએ અને તે વૈદ્ય એ भशान ५ भाट “ इसिं पाडेइ" ते मनमारने भान पर सुपडावा है કારણ કે જ્યાં સુધી તેને જમીન પર સુવડાવવામાં ન આવે ત્યાં સુધી તેને नाभा २२ भशा अभी शाय नहि. " इसि पाडेत्ता अंसियाओ छिदेना" सुपडावात वैध अनगारन भशाने पे “से णं तं भंते ! महन्त ! " जे छिदइ तस्स किरिया कज्जा" रे वैये ते भशा च्या ते वैधने ४५વાના વ્યાપાર રૂ૫ કિયા લાગે છે? વ્યાપાર રૂપ કિયા જે ધર્મ બુદ્ધિથી કરવામાં આવે તે તે શુભ છે. અને લેભ બુદ્ધિથી કરવામાં આવે તો તે मशुम छे. "जस्स लिज्जइ नो तस्स किरिया कज्जा नन्नथगेणं धम्मंतराइएणं"
SR No.009322
Book TitleBhagwati Sutra Part 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1968
Total Pages714
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size45 MB
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