SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 614
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 2 प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१३ उ० ४ सू० ५ लोकमध्यद्वारनिरूपणम् ५९१ आयाममध्यम्-आयामस्य दैय॑स्य मध्यं-मध्यभागः, प्रज्ञप्तम् ? भगवानाह'गोयमा ! इमीसे गं रयणप्षमाए पुढवीए उवासंतरस्स असंखेजइभाग ओगाहेत्ता, एत्य णं लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते' हे गौतम । अस्याः खलु रत्नप्रभायाः पृथिव्याः आकाशान्तरस्य-आकाशखण्डस्य, असंख्येयतमं भागम् अवगाह्य-उल्लइन्य-अत्र खलु रत्नप्रभापृथिव्या आकाशखण्डस्य असंख्येयतमभागोल्लंघनानन्तरे प्रदेशे, लोकस्य अस्य आयाममध्यं-दैयमध्यभागः, प्रज्ञप्तम् । गौतमः पृच्छति लोकमध्यद्वारवक्तव्यता-- 'कहि णं भंते ! लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते' इत्यादि। टीकार्थ-इस सूत्र द्वारा सूत्रकार ने लोकद्वार की प्ररूपणा की हैइसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है-'कहिणं भंते ! लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्त' हे भदन्त ! लोक की लम्बाई का मध्यभाग कहां पर कहा गया है ? इसके उत्तर में प्रभु कहते है-'गोयमा हमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए उवासंतरस्स असंखेज्जहभाग ओगाहेत्ता एस्थ णं लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते' हे गौतम ! इस रत्नप्रभापृथिवी का जो आकाशान्तर-आकाशखण्ड़ है उस आकाशखंड़ का जो असंख्यातवां, भाग है-उस असंख्यातवें भागको उल्लंघन करके जो स्थान आया हैवही लोक की लम्बाई का मध्यभाग है। अर्थात-रत्नप्रभापृथिवी के असंख्यातवें भाग को उल्लंघन करके अनन्तर प्रदेश में लोक की लम्बाई -मध्यातव्या“कहिणं भंते ! लोगस्स आयाममझे पण्णत्ते" त्याह ટીકાર્ય–આ સૂત્રમાં સૂત્રકારે લેકદ્વારની પ્રરૂપણ કરી છે. આ વિષયને मनुरक्षीन गौतम स्वामी महावीर प्रसुन सेवा प्रश पूछे थे 3-" कहिणं भते ! लोगस्स आयाममज्झे पण्णत्ते” 8 साव! नी माना મધ્યભાગ કઈ જગ્યાએ કહ્યું છે? महावीर प्रभुना उत्त२-"गोयमा! इमीसेणं रयणप्पभाए पुढवीए उवासं तररस असंखेज्जइभाग ओगाहेत्ता एत्य गं लोगस्स आयाममझे पण्णत्ते" ગૌતમ! આ રત્નપ પૃથ્વીનું જે આકાશાન્તર (આકાશખંડ) છે તે આકાશાતરના અસંખ્યાતમાં ભાગનું ઓળંગન કરતા જે સ્થાન આવે છે, તે સ્થાન જ લેકની લંબાઇને મધ્યભાગ છે. એટલે કે રત્નપ્રભા પૃથ્વીના આકાશનં. હના અસખ્યાતમાં ભાગનું ઉલ્લંઘન કર્યા બાદ જે સ્થાન આવે છે, તે સ્થાન જ લેકની લંબાઈને મધ્યભાગ છે.
SR No.009320
Book TitleBhagwati Sutra Part 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1967
Total Pages743
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_bhagwati
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy